Best Spiritual Story in Hindi
कर्मोें का फल
जानिए पितामह को किसने श्राप दिया था| जिसके वजह से उन्हें ऐसी मृत्यु भुगतनी पढ़ी
एक बार आठों वसु अपनी पत्नीयों के साथ वशिष्ठ जी के आश्रम में पधारे वहां आलौंकिक शान्ति छायी हुई थी। वसु और उनकी पत्नीयां देर तक आश्रम की प्रत्येंक वस्तु को देखती रही।
आश्रम की यज्ञशाला, साधना भवन और स्नातकों के निवास आदि सभी स्वच्छ सजे हुए एंव सुव्यवस्थित देखकर उन्हें बडी प्रसन्नता हुई। बडी देर तक वसु-गण ऋषियों के तप ज्ञान और उनकी जीवन व्यवस्था पर चर्चा करते और प्रसन्न होते रहें,
इस बीच वसु प्रवास एंव उनकी धर्मपत्नी आश्रम के उद्यान भाग की ओर निकल आयें वहां ऋषि की कामधेनू और नन्दनी हरे पत्ते और घास चर रही थी। गाय की भोली आकृति धवल वर्ण प्रवास पत्नी को भा गयी, और वह पाने के लिए व्याकुल हो उठी।
उन्होंने प्रभास को संबोधित करते हुए कहा- स्वामी नंदिनी की मृदुल दृष्टि ने मुझे मोहित किया है, मुझे इस गाय में आसक्ति हो गयी हैं अत-एंव इसे अपने साथ ले चलिए।
प्रभास हस कर बोले देवी “ओरो की प्यारी वस्तु को देखकर लोभ और उसे अनाधिकार पाने की चेष्टा करना पाप है। उस पाप के फल से मनुष्य तो मनुष्य हम देवता भी नही बच सकते क्योंकि ब्रम्हा जी ने कर्मों के अनुसार ही सृष्टि की रचना की है।”
हम अच्छे कर्म से ही देवता हुए हैं बुराई पर चलने के लिए विवश मत करों अन्यथा कर्म भोग का दण्ड हमें भी भुगतना पडेगा। हम देवता हैं इसलिए पहले ही अमर हैं, नंदिनी का दूध तो अमरत्व के लिए हैं उससे अपना प्रयोजन भी तो सिद्ध नहीं होता ? प्रभास ने अपनी धर्मपत्नी को सब प्रकार से समझाया । पर वे न मानी।
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उन्होंने कहा- ऐसा मैं अपने लिए तो कर नहीं रही मृत्युलोक में मेरी एक सहेली हैं उसके लिए कर रही हूं। ऋषि भी आश्रम में नही हैं इसलिए यथाशीघ्र गाय को यहां से ले चलिए। प्रभास ने फिर समझाया देवी चोरी और छल से प्राप्त वस्तु को परोपकार में भी लगाने से पूण्य फल नहीं होता। अनिती से प्राप्त वस्तु के द्वारा किये हूए दान और धर्म से शांति भी नही मिलती इसलिए तुमको यह जिद छोड देनी चाहिए।
वसु की पत्नी समझाने से भी न समझी प्रभास को गाय चुरानी ही पडी। थोडी देर में अन्यत्र गये हुए वशिष्ठ आश्रम लौटे गाय को न पाकर उन्होंने सबसे पूछताछ की किसी ने उसका अता पता नही बताया, ऋषि ने अपने ज्ञान चक्षुओं से देखा तो उन्हें वसुओं की करतुत मालूम पड गयी।
देवताओं के इस उधत पतन पर शांत ऋषि को भी क्रोध आ गया। उन्होंने श्राप दे दिया। सभी वसुदेव शरीर त्यागकर प्रथ्वी पर जन्म ले। श्राप व्यर्थ नहीं हो सकता था। देव गुरु के कहने पर उन्होंने सात वसुओं को तत्काल मुक्ति का वरदान दे दिया पर अंतिम वसु प्रभास का चिरकाल तक मनुष्य शरीर में रहकर कष्टों को सहन करना ही पडा।
यह आठों वसु क्रमशः महाराज शांतुनुजु की पत्नी गंगा के उदर से जन्मे। सात की तो तत्काल मृत्यु हुई पर आठवे वसु प्रभास को पितामह के रूप में जीवित रहना पडा। महाभारत युद्ध में उनका शरीर छेदा गया। यह उसी पाप का फल था जो उन्होंने देव शरीर मे किया था। इसलिए कहते हैं कि गलती देवताओं को भी क्षम्य नही मनुष्य को तो उसका अनिवार्य फल भोगना ही पडता है।
स्ंसार के लगभग सभी धर्मशास्त्र, दर्शन और विद्वान यह कहते हैं कि प्रत्येंक कर्म का फल नियत हैं और उसे नि‘संदेह भोगना ही पडता है।
दुष्कर्म के लिए पश्चताप करना ही पडता हैं यह न समझा जाये कि एंकात में किया गया अपराध किसी ने देखा नही। ईश्वर सर्वव्यापक है। उनकी दृष्टि से कुछ भी छूपा हुआ नही है। विद्वान वही हैं जो परमात्मा द्वारा नियत कर्म के सिद्धांत को समझता है। और सदकर्म के मार्ग पर चलता है। जिसके लिए सृष्टि का प्रत्येक प्राणी अपना बंधू हैं और प्रत्येक दूख अपना दूख और उसके लिए संसार में प्रत्येक वस्तु सुलभ है।
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