Hindu Religious Story in Hindi
Mahabharat का युद्ध घोषित हो चुका था। कुरूक्षेत्र में एक ओर पांडव सेना और दूसरी ओर Kaurav सेना आकर डट गयी। पांडव सेना में पांचों महाबली पांडव थे और उनके साथ थे वासुदेव “श्रीकृष्ण” लेकिन कौरव सेना बडी विशाल थी।
उस युग के बडे-बडे महारथी भिष्मपितामह, द्रोणाचार्य, क्रपाचार्य, शलय्करण जैसे अजेय योद्धा सभी किसी न किसी कारण वश होकर कौरव सेना के साथ थे। सभी दुर्योधन के पक्ष में लडने युद्ध भूमि में आ गये। उस धर्मराज युधिष्ठिर अपने भाईयों के साथ युद्ध के लिए सुसज्जित होकर युद्ध भूमि में आते है। सामने भिष्म पितामह कुछ श्रेष्ठ योद्धाओं को देखकर वे रथ से नीचे उतरते हैं और अकेले दूर्योधन की सेना की ओर चल पडते है। यह देखकर भीम, अर्जून घबराये श्रीकृष्ण से कहते हैं आप धर्मराज और क्षत्रु सेना के सामने जाने से रोकीए कहीं अनर्थ न हो जाये।
श्रीकृष्ण कहते है- युधिष्ठर धर्म एंव नीति के ज्ञाता है जो भी कह रहे हैं कर रहे हैं उचित ही होगा। तभी धर्मराज भिष्म पितामह के पास जाकर प्रणाम करते है। और कहते है – पुज्य पितामह आपके सामने शास्त्र उठााने का अवसर आ पडा हैं यह मेरे मन को बहुत ही अप्रिय लगा हैं क्या करूं विवश हूं। अब आप हमें युद्ध करने की आज्ञा प्रदान कीजिए। युधिष्ठर की विनम्रता से भिष्म पितामह गदगद हो गये।
बोले- युधिष्ठर तुम वास्तम में धर्मराज हो। तुमने हमारी गौरवमयी परंपरा को अक्षुण्ण रखा है। मैं तूमसे प्रसन्न हूं। तुम्हारी नम्रता और धर्मशीलता ने मुझे विवश कर दिया हैं कि मैं तुम्हे विजय होने का आशीर्वाद दूं।
युधिष्ठिर कहते हैं पुज्य पितामह आपसे युद्ध करके हम किस प्रकार विजयी बन सकते है। यदि नही तो फिर आपका यह आशीर्वाद कैसे सफल हो सकता है ? भिष्म ने कहा- धर्मपुत्र इस युद्ध में विजयी तुम्हारी होगी यह मेरा आशीर्वाद है। रहा प्रश्न मुझे परास्त करने का तो इसका रहस्य भी समय आने पर मैं तुम्हें बता दूंगा।
Also Read : खुद से पूंछे की क्या आपको आपके शास्त्र, धर्म से कोई मतलब है, By OSHO
युधिष्ठिर वहां से द्रोणाचार्य के पास आये और दण्डवत प्रणाम करके बोले- गुरूदेव विवश होकर हमें आपसे युद्ध करना पड रहा है। आप हमें युद्ध की आज्ञा दीजिए और आशीर्वाद भी। द्रोणाचार्य ने भी अपनी विवशता बताते हुए कहा- विजयी भव ! युधिष्ठिर बोले- गुरूदेव आपके होते हुए हम इस युद्ध में विजयी कैसे हो सकते हैं ? फिर आपका आशीर्वाद कैसे सफल होगा ? द्रोणाचार्य ने भी युधिष्ठिर को अपनी मृत्यु का रहस्य बता दिया।
Also Read : यहां तो सब कारण हैं। लोग शर्तबंदी किए हुए है Fake Peoples Story
इसी प्रकार युधिष्ठिर ने क्रपाचार्य और शल्यराज से भी युद्ध की आज्ञा और विजयी आशीर्वाद प्राप्त कर लिया। दोनों ने भी अपनी मृत्यु रहस्य युधिष्ठिर को बता दिया। इस प्रकार गुरूजनों को प्रणाम करके युधिष्ठिर ने अपनी नम्रता से महाभारत का आधा युद्ध जीत लिया। अजेय महारथीयो की मृत्यु का रहस्य प्राप्त कर लिया।
महाभारत का यह प्रसंग गुरूजनों से आशीर्वाद और गुढ रहस्य प्राप्त करने का यह सन्देश देता हैं कि नम्रता, श्रद्धा और समर्पण की भावना तथा क्रिया से प्रसन्न होकर गुरू उसे गुढतम रहस्य बता देते हैं यहां तक कि अपनी मृत्यु का रहस्य भी बता देते है। इस प्रकार युधिस्ठर ने आधा युध्द तो यूँही जीत लिया था |
#story of karan in mahabharat in hindi
Also Read :
No Responses