मां की झूठी ममता – दो सहेलियों की कहानी

दोस्तों प्रत्यके व्यक्ति के जीवन में ऐसा कोई न कोई मित्र या भाई आदि होता हैं जिस पर व्यक्ति को अटूट विश्वास होता हैं। लेकिन ऐसा अक्सर देखने को मिलता हैं की जिस ओर से हमे अटूट विश्वास होता हैं वही धोखा दे जाता हैं। यह लगभग हर एक मानव के साथ होता है।

पढ़िए इसी कहावत पर एक कहानी। दो स्त्रियां पडोसीन होने के साथ-साथ गहरी सहेलियां भी थी लेकिन थी दोनों संतान सुख से वंचित। देव योग से कुछ वर्षों बाद उनमें से एक को एक पुत्र हुआ। उन्होंने निश्चय किया कि हम इसे मिलकर पालेंगे और किसी को भी यह नहीं बतायेंगे की इस बच्चे की असली मां कौन है।

सहेली का दिल रखने के लिए बच्चे की असली मां सहमत हो गई और बच्चे का पालन पोषण होने लगा। मगर एक दिन पडोसीन के मन में खोट आ गई। वह बोली- अब तुम न बच्चे को ले सकती हो न खिला-पीला सकती हो क्योंकि यह बच्चा मेरा है।

इसलिए इसका पालन-पोषण मैं ही करूंगी। सुनकर बच्चे की असली मां घबरा गई। और जबरन उससे बच्चा छिनने लगी इस तरह बच्चे को लेकर दोनों में झगडा हो गया। दोनों ही स्वयं को उस बच्चे की असली मां बताती। जब किसी तरह झगडा नहीं सुलझा तो मामला न्यायालय में पहूंच गया।

न्यायाधिश ने ध्यानपूर्वक दोनों की बातें सुनी, दोनों ने अपना-अपना पक्ष इस प्रकार रखा कि न्यायाधीश के लिए भी निर्णय करना टेढी खीर हो गई। आखिर में न्यायाधीश को एक उपाय सुझा उन्होंने अपने कर्मचारी को आदेश दिया इस बच्चे के दो टुकडे करके दोनों में बांट दो।

आदेश सुनते ही एक स्त्री चिल्ला-चिल्ला कर रोने लगी और बोली- नहीं, नहीं सरकार ऐसा जूर्म मत करो यह बच्चा आप इसी को दे दो। लेकिन मेरे लाडले का अहित न करो। दूसरी सहेली कुछ नहीं बोली, वह अपनी जीत पर गर्व से तनी खडी थी यह देख चतुर न्यायाधीश तुरन्त समझ गये कि बच्चे की असली मां यही है।

उन्होंने बच्चा उस स्त्री को सौंप दिया और दूसरी को जेल भेज दिया। शिक्षा – मिथ्या को कुछ समय के लिए तो मिथ्या बनाया जा सकता हैं लेकिन वास्तविक कोई झुलाया नहीं जा सकता।

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