Short Story On Poverty
एक बार महाराजा रणजीत सिंह घोडे पर सवार होकर सैनिकों के साथ जा रहे थे। अचानक एक पत्थर उनके सिर पर आकर लगा। उनका लष्कर रूक गया और पत्थर मारने वाले की तलाश शुरू हो गयी।
थोडी देर में सैनिक एक बुढियां को पकड़ लायें जो भय से थर-थर कांप रही थी। सैनिकों ने कहा- महाराज इस बुढियां ने आपको पत्थर मारा है।
महाराज ने बुढियां को पास बुलाकर कारण पूछा तो वह बोली महाराज मेरे बच्चे दो दिन से भूखे हैं, अनाज का एक दाना भी घर मे नही है। जब कोई उपाय न सुझा तो भोजन की तलाश में घर से निकल पडी, सामने पेड पर फल देखकर मैं पत्थर मारकर इन्हें तोडने की कोशिश कर रही थी ताकि बच्चों के पेट की ज्वाला शांत कर सकूं, दूर्भाग्य ने यहां भी मेरा साथ नहीं छोडा और पत्थर आपको लग गया मैं माफी चाहती हूं।
बुढियां की यह बात सुनकर महाराज ने सेनापति को आदेश दिया कि इसे कुछ अशर्फियाँ देकर छोड दो, सेनापति ने आश्चर्य से पूछा महाराज यह कैसा इनाम यह तो सजा की हकदार है। रणजीतसिंह ने हंसकर उत्तर दिया-
जब पत्थर मारने पर निर्जीव पेड भी मीठा फल देता हैं तो मनुष्य होकर मैं बुढियां को निराश क्यों करूं। बुढियां महाराज के सामने नतमस्तक हो गयी। महाराज की न्यायप्रियता इतिहास में अमर है।
सच्चा राजा कभी प्रजा को नुकसान नहीं देता और फिर मनुष्य होने के नाते हमारा इतना कर्तव्य तो बनता ही है की हम हमारे पास जो भी अतिरिक्त वस्तु है उसे अन्य लोगों में बांटे ।
यह कहानियां भी जरूर पढ़े