User Review
( vote)Speech on Mano Mat Jano
ओशो मानो मत जानो हिंदी प्रवचन – मैंने तो नहीं कहा की वह सब गलत है। मैंने तो इतना ही कहा की आप उसे पकड़ लें, तो यह पकड़ लेना गलत है। ऋषि मुनियों से मुझे कोई वास्ता नहीं। क्योंकि ऋषि-मुनि बड़े खतरनाक होते हैं, उनसे वास्ता रखना खतरनाक है। अभी हिंदुस्तान के ऋषि मुनि और शंकराचार्य हाईकोर्ट में मुक़दमा लड़ते हैं । उनसे दोस्ती रखना, उनकी बात ही करना खतरनाक है ।
इसे पड़ने से पहले यह जरूर पढ़ें : इस speech का पहला पेज पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें : CLICK HERE
लेकिन आप किसको ऋषि कहने लगते है, किसको मुनि कहने लगते हैं, और कैसे, और कैसे आप पता लगा लेते हैं ? आपके पास जांच क्या है ? मापदंड क्या हैं ? आपके पास कसोटी क्या है की फलां आदमी ऋषि है और मुनि है ? सिवाय प्रपोगेण्डा के और तो कोई कसोटी नहीं मालूम पड़ती ।
रामकृष्ण परमहंस को हिन्दू तो कहेंगे की परमहंस है । लेकिन किसी जैन से पूंछे ? वे कहेंगे कैसे परमहंस ? मछली कहते हैं ! उसकी कसोटी में बिलकुल न उतरेंगे । वे कहेंगे, इनसे तो एक साधारण जैनी अच्छा, कम से कम मछली तो नहीं खाता, मांसाहार तो नहीं करता । ये कैसे संत ! ये किस प्रकार के संत है ?
अगर एक दिगंबर जैन से पूंछो की क्राइस्ट ज्ञान को उपलब्ध हो गए हैं । वे कहेंगे कैसे उपलब्ध हो गए ? महावीर तो नग्न खड़े हुए है, यह आदमी तो कपडे पहने हुए है ! तो कपडे पहने हुए आदमी भी कहीं ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है ! झूठी है यह बात । यह नहीं हो सकता ।
कसौटियां भी हमारे हजारो साल के प्रचार से निर्मित हो गयी है। और जिसको बचपन से जो कसोटी पकड़ गई है, वह उसी पर तोल रहा है की कोन ऋषि है, कौन मुनि है! अपना हमें पता नहीं की हम क्या है !
Mano Mat Jano आचार्य रजनीश के प्रवचन
- 31* Facts About Acharya Rajneesh Osho
- ओशो शब्द का क्या अर्थ है, Why did Lord Rajneesh used the word Osho for his name
और हम यह भी तय कर लेते है की कौन ऋषि है कौन मुनि है, कौन परमहंस है, कौन ज्ञानी है ! और झगड़ते भी है इस बात पर की फलां आदमी तीर्थंकर है, और फलां आदमी भगवान का अवतार है, फलां आदमी ईश्वर का पुत्र है। और अगर कोई इंकार कर दे तो यह झगड़े की बात है ! कैसे आप पता लगा लेते हैं, किसने आपको बताया ?
प्रचार प्रतिमाए खड़ी कर देते हैं, और फिर हम उनको हजारों साल तक पूजते रहते हैं। और जितना प्रचार लम्बा होता जाता है उतनी ही वे प्रतिमाये दुर्गम होती जाती है आकाश में उठने लगती है ।
फिर वह आदमी नहीं रह जाते, धीरे-धीरे परमात्मा हो जाते है भगवान, अवतार हो जाते है और न मालूम क्या। और उनके इतने पागल भक्त पीछे होते हैं की कोई शक करे तो जिंदगी खतरें में डलें। तो कौन कहें ?
लेकिन बड़ी हैरानी है की कभी हम सोचते भी नहीं की हम निर्णायक कैसे हो जाते हैं की कौन संत, कौन साधु ? और फिर एक सर्कुलर रीजनिंग शुरू होती है । में कुछ कहूँगा, तो आप कहेंगे यह तो हमारे साधुओ ने नहीं कहा तो या ठीक नहीं हो सकता। और अगर में पूंछू की इनको आप साधु क्यों कहते हैं ? तो आप कहेंगे जो उन्होंने कहा, वह बिलकुल ठीक हैं, इसलिए हम उनको साधु कहते हैं ।
सच तो यह है की, साधु उनको इसलिए कहते है की जो उन्होंने कहा, वह बिलकुल ठीक है ? और जो उन्होंने कहा, वह बिलकुल ठीक होना ही चाहिए, क्योंकि वे साधु हैं? इस सारे चक्कर में आदमीं का मन अत्यंत मूढ़तापूर्ण हो गया है । तो मेंने जो पहले आपसे कहा, वह इसलिए कहा की चित्त की इस पूरी स्थिति पर सोचिये विचार करिये की हमारा चित्त क्या कर रहा है ।
हम कहीं प्रचार के शिकार तो नहीं है ? हजारों सालों से चलने वाली, बार-बार दोहराई जाने वाली बातों के हम केवल गुलाम तो नहीं है ? हमने भी कभी कुछ सोचा है खोज है विचार है कोई शान भी हमारे अपने चिंतन का फल है, या की हम केवल दोहराने वाले लोग है ?
जब तक हम इस तरह दोहराने वाले लोग रहेंगे, तब तक कुछ Cunning minds, कुछ चालाक लोग हमारा शोषण करते ही रहेंगे। उन्होंने तरकीब पा ली है, वे दोहराने का उपाय जानते है। वे दोहराते है तरकीब से प्रचार करते हैं और हम उसमें जकड जाते हैं। आदमी को इस चुकता प्रचार के बाहर हो जाना चाहिए, तो ही वह आदमीं धार्मिक हो सकता है।
क्योंकि धार्मिक आदमी चिंतन करता है सोचता हैं अनुभव करता है अंधे होकर मान नहीं लेता है। और हम सब अंधे है। हमने अंधे होकर सब बातें मान ली है ।
मानो मत जानो हिंदी प्रवचन – ओशो हमें चिंतन करने को कह रहे है की सभी चिंजो पर किसी भी बात को मान ने से पहले जानो तब मनो अंधे होकर मत चलो, अंधे होकर मत जियों – ओशो के बारे में और अधिक पड़ने के लिए यहाँ क्लिक करें...
Also Read :
- Journey Of Meditation in Hindi (Secrets)