Hindu Spiritual story On Veiragya
आप कैसे वैरागी ?
चक्रवती भरत के जीवन की एक घटना है कि, एक दिन विप्र देव ने उनसे पूछा- महाराज आप वैरागी है तो महल में क्यों रहते हैं ? आप महल में रहते हैं तो वैरागी कैसे ? मोह, माया, विकार, वासना के मध्य आप किस तरह के वैरागी है ?
क्या आपके मन में कोई मोह, पाप, विकार और वासना के कोई भाव नही आते ? चक्रवती भरत ने कहा- विप्र देव तुम्हें इसका समाधान मिलेगा लेकिन तुम्हे पहले मेरा एक कार्य करना होगा। जिज्ञासु ने कहा- कहिए महाराज, आज्ञा दिजिए हम तो आपके सेवक हैं और आपकी आज्ञा का पालन करना हमारा कर्तव्य है।
चक्रवती भरत ने कहा यह पकडो तेल से लबालब भरा कटोरा इसे लेकर तुम्हें मेरे ‘अन्त पूर’ में जाना होगा, जहां मेरी अनेक रानीयां है, जो सज-धझ कर तैयार मिलेंगी उन्हें देखकर आओं। और बताओं कि मेरी सबसे सुंदर रानी कौन सी है ?
भरत की इस बात को सुनकर जिज्ञासु बोला – महाराज आपकी आज्ञा का पालन अभी करता हूं। अभी गया और अभी आया। तब भरत बोले- भाई इतनी जल्दी न करो पहले पूरी बात सुन लो। तुम्हं ‘अन्त पूर’ में जाना हैं पहली बात, सबसे अच्छी रानी का पता लगाना है दूसरी बात, लबालब तेल भरा कटोरा हाथ में ही रखना तीसरी बात, तुम्हारें पीछे दो सैनिक नंगी तलवारें लेकर चलेंगे और यदि रास्तें में तेल की एक बुंद भी गिर गई तो उसी क्षण यह सैंनिक तुम्हारी गर्दन धड से अलग कर देंगे चौथी बात।
वह व्यक्ति चला, हाथ में कटोरा हैं और पूरा ध्यान कटोरे पर। एक-एक कदम फूक-फूक कर रख रहा हैं ‘अन्त पूर’ में प्रवेश करता हैं, दोनो तरफ रूप सी रानीयां खडी हैं पूरे महल में मानो सौंदर्य छिडका हुआ है। कही संगीत तो कही नृत्य चल रहा हैं, लेकिन उसका मन कटोरे पर अडिग हैं, चलता गया बडता गया और देखते ही देखते पूरे ‘अन्त पूर’ की परिक्रमा लगाकर चक्रव्रति भरत के पास आ पहूंचा।
पसीने से तर-बतर था। बडी तेजी से हांफ रहा था, चक्रवाती भरत ने पूछा-बताओं मेरी सबसे सुंदर रानी कौनसी है ? जिज्ञासु विप्र देव बोले महाराज आप रानी की बात पूछ रहे हैं कैसी रानी ? किसकी रानी ? मुझे कोई रानी–वानी नही दिख रही थी। मुझे तो अपने हाथो में रखा कटोरा और अपनी मौत दिख रही थी। सैनिकों की चमचमाती नंगी तलवारे दिख रही थी।
वत्स यही तुम्हारी जिज्ञासा का समाधान हैं, तुम्हारे सवाल का जवाब हैं। जैसे तुम्हे अपनी मौंत दिख रही थी रानीयां नही, रानियों का रूप, रंग, सौंदर्य नही और इस बीच रूप सी रानीयों को देखकर तुम्हारें मन में कोई पाप विकार नही उठा वैसे ही हर पल मैं अपनी मुृत्यु को देखता हूं। मुझे हर पल मृत्यु की पदचाप सुनाई देती हैं और इसलिए मैं इस संसार की वासनाओं के कीचड से उपर उठकर कमल की तरह खिला रहता हू। राग रंग में भी वैराग की चादर ओढे रहता हूं। इसी कारण मोह–माया, विकार वासना मुझे प्रभावित नही कर पाती।
जीवन की चादर को साफ, स्वच्छ और ज्यों की त्यों रखनी हैं तो इस जीवन में क्रांति के लिए एक ही सुत्र हैं और वह हैं “मृत्यु”। इस मृत्यु का मूहूर्त नही होता। न तो जन्म का कोई मूहूर्त होता हैं और न ही मृत्यु का। ग्रह प्रवेश का तो मूहूर्त होता हैं लेकिन संसार त्याग का नही। सांसारिक मोह-माया की नश्वरता का बोध होते ही ज्ञानी पुरूष संसार को छोड़कर वन की तरफ चल देता है। क्योंकि जीवन तो वन में ही बनता हैं भवनो में तो जीवन सदा उजडता रहा है। वन बनने की प्रयोगशाला हैं, राम वन गये तो बन गये, महावीर वन गये तो बन गये।
“इस कहानी में दो सन्देश है, एक तो वैराग्य जीवन का “जो की अध्यात्म में रूचि रखने वाले दोस्तों को बहुत ही पसंद आया होगी”, दूसरा – ‘विप्र देव उदाहरण है’ की जब आपको कोई चीज़ पाना हो तो, अपने आपको उस में झोंक देना, विप्र देव को सिवाय उस तेल से लबालब भरे कटोरे के सिवाय कुछ नहीं दिख रहा था, ठीक उसी तरह अगर आपको अपना लक्ष्य पाना हो तो आपको भी वैसे ही अपने आपको उसमें पूरी तरह लगाना होगा, सब कुछ छोड़कर सिर्फ अपने लक्ष्य पर केंद्रित होना होगा।
Story of Retired Men on Veiragya
एक सेवा रिटायर्ड जज थे। बडे विद्वान और विचारक थे। वे हर रोज शाम के समय घुमने के लिए जाया करते थे। एक दिन जब वे लौट रहे थे तो कुछ अधंरा हो चला था, सडक के दोनो औंर झुग्गी-झोपडी वाले रहते थे। झूंग्गी झोपडी का एक पुरुष काम करके झोंपडी में लौटा ही था कि उसने घर में अंधेरा देखकर अपनी बेटी को आवाज दी और कहा- बेटी संध्या हो गई हैं और तुने अभी तक दिया नही जलाया, जैंसे ही यह शब्द रिटायर्ड जज के कानों पर पडे तो उनके कदम ठिठक गये वे विचारों में खो गये।
उन्होंने सोचा मेरे जीवन में भी संध्या होते कितनी देर हो गयी और मैंने अपने जीवन का कोई दिया नही जलाया। ज्ञान का, ध्यान का आत्म साधना का दिया जलाने केा समय बिता जा रहा हैं और मैं अभी तक बेहोश ही हू। ऐसा सोचते-सोचते उनके विचारों एकदम से मोड खाया और इस घटना से उनका पूरा जीवन बदल गया। और घर की पूरी जिम्मेदारी अपने बच्चों को सौंपकर वन की ओर चल दिये।
जीवन क्रांति के लिए जरुरी है मृत्यु-बोध, इस संसार की हर एक चीज़ हमें मौत के समीप ले जाती हैं, इसलिए जब तक मृत्यु बोध नहीं हो जाता तब तक कुछ नहीं होना जाना….