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( votes)अकबर बीरबल की कहानियां
जूता कितने का पडा ? अकबर बीरबल
आगरा केवल ताजमहल के लिए ही नहीं जूतों के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। अकबर के जमाने से ही जूतों का उद्योग प्रगति पर था। स्वयं बादशाह आगरा के बेहतरीन जूते पहनने के शौकीन थे।
एक बार बादशाह अकबर ने बडी खोजबीन के बाद अपने लिये किमती जूते मंगवाये। उस दिन दरबार में समा्रट के जूतों की चर्चा चल रही थी। हरकोई बादशाह अकबर की चापलून में उनके जूतों की तारीफ के पूल बांध रहा था।
कुछ देर बाद दरबार में बीरबल ने कदम रखा तो उन्हें भी बादशाह अकबर के जूतो के बारे में बताया गया। जूते देखकर बीरबल ने बादशाह अकबर सलामत से पूछा ?
आलमपनाह यह जूते कितने के है ? पुरे दो सौ रूपये के। फिर एक जूता कितने का पडा ? बीरबल ने पुछा? सौ रूपये का बादशाह ने तुरन्त उत्तर दिया। किन्तु तभी उनका ध्यान अपने उत्तर पर गया तो शरमाकर रह गये। बेचारे दरबारीयों से उस समय न हंसते बन रहा था न ही रोते। बीरबल का सवाल ही एसा था।
Akbar Birbal Kahani आधी धूप आधी छाँव Story – 2
एक दिन बादशाह अकबर ने खफा होकर बीरबल को नगर से बाहर जाने का आदेश दे दिया । मगर बीरबल तो हर हाल में खुश रहने वाला व्यक्ति था. वह यह भी जानता था कि बादशाह अकबर सलामत का यह गुस्सा थोडे ही समय का है। शीघ्र ही उनकी नाराजगी दूर हो जायेगी, वे नगर से बाहर एक गांव में जा बसे।
अज्ञात वास करते-करते महीनों गुजर गये। न बादशाह अकबर ने उन्हें बुलाया और न ही वे आये। समय-समय पर बादशाह अकबर बीरबल को याद करके चिंता करते, मगर बीरबल का कोई अता-पता मालूम न होने से वे लाचार थै।
जब किसी प्रकार बीरबल का पता नही चला तो बादशाह अकबर ने उन्हे ढूंढने की तरकीब निकाली, उन्होने राज्य के चप्पे-चप्पे पर डिंडोरा पिटवा दिया कि जो शख्स आधी धूप-आधी छांया में हमारे पास आयेगा उसे एक हजार रुपये इनाम मे दिये जायेंगे।
बहुत से लोगों ने इनाम पाने की कोशिश की पर किसी को आधी धूप आधी छायं में होकर आने की युक्ति नहीं सुझी।
यह बात फैलते-फैलते बीरबल के कानों तक भी पहूंची । वह अपने घर के पास गरीब बढई को बुलाकर बोले- तुम एक चारपाई अपने सिर पर रखकर अकबर के पास जाओ और उनसे कहों कि मैं आधी धूप और आधी छायं में होकर आया हूं इसलिए मुझे इनाम मिलना चाहिए।
बडई बीरबल की बात मान एक चारपाई सिर पर रख अकबर के पास पहूंचा और बोला बादशाह मैं आधी धूप और आधी छायं में चलकर आया हू। इसलिए मुझे इनाम के एक हजार रूप्ये मिलने चाहिए।
बादशाह अकबर ने उससे पुछा सच-सच बताओ , तुम्हे इस प्रकार की सलाह किसने दी। बादशाह अकबर सलामत कुछ दिनों पूर्व एक विद्वान हमारें गांव में आकर बसा है, लोग उसे बीरबल के नाम से पुकारते है। उसी के कहने पर मैंने यह कार्य किया।
बडई ने भोलेपन से कहा- बडई के मुख से बीरबल का नाम सुनकर बादशाह अकबर बडे प्रसन्न हुए। उन्होने खंजांची से बढई को एक हजार रूप्ये देने का आदेश दिया। फिर बढई के साथ अपने दो खास कर्मचारीयों को बीरबल को लाने को भेज दिया। इस प्रकार बीरबल बादशाह अकबर के पास दोबारा पहूंच गये।