एक बार अकबर अपनी बेगम पर नाराज हो गये। उन्होंने बेगम से कहा- तुम अपने पीहर चली जाओं फिर मुझे कभी अपनी शक्ल मत दिखाना। बेगम घबरा गयी उन्होंने फौरन बीरबल को बुलवाया और उन्हें सारी बातें कह सुनायी।
पूरी बात सुनकर बीरबल ने उन्हें सलाह दी और चुपके से दरबार में पहूंच गये। इसके बाद बेगम बादशाह से मिलने महल में गई। बादशाह ने उन्हें देखकर मूंह फेर लिया, बेगम ने कहा- जहांपनाह आपको छोडकर जाना मुझे बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा मगर आपका हुक्म हैं इसलिए मुझे जाना ही पडेगा।
मुझे तो अपना बाकी जीवन आपकी सेवा में ही बिताना था। परन्तु अब क्या हो सकता है ? अकबर ने उनकी और बिना देखे ही कहा- झुठी खुशामद मत करो जो कुछ कहना हैं जो कुछ कहना हैं झठपट कहकर चली जाओ। बेगम ने कहा- देखिए अब तो मैं हमेशा के लिए अपने पिहर चली जाउंगी।
मेरी इच्छा हैं कि आज रात को आप मेरे महल में भोजन के लिए पधारें और मेरी सबसे प्रिय चीज मुझे अपने साथ ले जाने की अनुमति दें। आपकी याद स्वरूप उस चीज को देखते हुए मै अपना बाकी जीवन बीता लूंगी। बादशाह ने महल में आते और जाते समय अपनी सबसे प्यारी चीज ले जाने की इजाजत दे दी।
रात को अकबर बेमम के महल में पहूंचे तो बेगम ने उन्हें मनपसंद भोजन करवाया अंत में उन्होंने उन्हें एक पान खिलाया, पान में बेहोशी की दवा थी इसलिए बादशाह अकबर पलंग पर लैटते ही बेहोश होकर सो गये।
दूसरे दिन जब सुबह बादशाह की आखे खुली तो उन्होंने आसपास देखा तो सभी कुछ नया-नया लगा। उन्होंने देखा कि पलंग के पास बेगम बैठी हैं, बादशाह अकबर कुछ कहते इससे पहले ही बेगम बोली-
माफ करें जहापनाह, मेरी सबसे अधिक प्रिय चीज मुझे अपने साथ ले आने की आपने ही स्वीकृती दी थी। मेरी सबसे अधिक प्रिय चीज तो आप ही हैं इसलिए मैं आपको लेकर अपने पीहर आ गयी हूं।
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