तीर्थ पवित्र क्यों माने जाते हैं – Science Of Pilgrimage in Hindi

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आपके मन में भी बहुत बार यह प्रश्न आया होगा की लोग तीर्थ क्यों जाते है ? Pilgrimage तीर्थ को पवित्र क्यों मानते हैं। इसके पीछे बहुत बड़ा विज्ञान छुपा हुआ हैं, जानिये इस विज्ञान को।

तीर्थ का अर्थ हैं वह साधन जिसके अवलंबन से मनुष्य भवसागर से तर सके। हमारे महर्षियों ने विभिन्न भूमियों का परीक्षण किया, जिस-जिस भूमि के जल में महर्षियों ने परीक्षण द्वारा पवित्रीकरण शक्ति अधिक पायी, जहां-जहां उन्हें संसार की सभी वस्तुओं को शोधन करने में क्षमतेजस तत्व की अधिकता दिखायी दी उन्ही स्थानों को तीर्थ नाम दे दिया गया।

तीर्थ में जाकर बिना किसी भेदभाव के मनुष्य लाभ उठाने लगे। हमारे ऋषि-मुनियो, साधु-संतों ने इन तीर्थ स्थानों को अपने निवास के लिए योग्य पाया और वहीं पर अपने आश्रमों की स्थापना कर दी।

संतो के समागम से तीर्थों की वह पावन शक्ति और भी बढ गई। वहां कीर्तन, प्रवचन, वेद-वाद, पाठ, यज्ञ आदि होने लगे, जिससे तीर्थों को वायुमंडल तथा वातावरण इतना पावन एंव पुण्यमय बन गया कि वहां जाने वाले व्यक्ति के लिए मुक्ति जैसी दूर्लभ वस्तु भी सुलभ मानी जाने लगी।

तीर्थो की पवित्रता का वैज्ञानिक आधार भी है, तीर्थाे को तारक शक्ति सपन्न तीन कारणों से कहा जाता है- विशिष्ट भूमित्र, विशिष्ट जल, साधु-महात्माओं का निवास।

तीर्थो की भूमि का अदभूत प्रभाव मनुष्य के शारीरिक ताप को दूर करने में सक्षम होता है। तीर्थो का वायुमंडल शुद्ध निर्मल और अधिक जनसमुदाय रहित होने के कारण मनुष्य के अनेक रोगों को दूर करने में सक्षम होता है।

जो तीर्थ पर्वतों के पास होते हैं उनमें अनेक ऐसी जडी-बुटियां मिलती हैं जिनकी एक ही मात्रा भयंकर से भंयकर रोग को भी दूर कर देती है। तीर्थ की दूसरी विशेषता तजोमय जल है। जैसा कि हम जानते हैं कि हमारे प्राण और मन जलीय तत्वों से निर्मित है। मनुष्य जिस प्रकार का अन्न, जल सेवन करता हैं उसका मन भी वैसा ही हो जाता है। तीर्थो के तेजोयुक्त जल, अन्न, स्नान आदि द्वारा मनुष्य के मानसिक ताप दूर होते हैं और उनके लिए मुक्ति का मार्ग सुगम हो जाता है।

मंदिर आदि जगहों पर भी जाने पर मन खुश हो जाता हैं। जैसे की आप किसी मंदिर में गए, और वहां आपको लगेगा की यहां पर बहुत अच्छा लग रहा हैं। आतंरिक प्रसन्नता मिल रही है। ऐसा इसलिए होता हैं क्योंकि मंदिर में जो भी लोग जाते हैं वह एक आशा लेकर जाते हैं। यानी की मंदिर में पूजा करना, दीपक, अनुष्ठान आदि इन सब से एक वातावरण निर्मित होता हैं जिससे हमे आतंरिक प्रसन्नता मिलती हैं।

तीर्थ पवित्र में आतंरिक शांति देने वाले क्यों होते हैं इसके लिए यह एक अच्छा उदाहरण हैं। आपने देखा होगा, अगर आपके घर में भगवन की पूजा करने का अलग ही कक्ष होगा तो वहां उस कक्ष में जाने पर आपको अलग ही महसूस होगा, शांतिमय लगेगा। इसके पीछे यही कारण   होते हैं, जहां भी हम अच्छी भावना लेकर जाते हैं और साफ़ सफाई रखते हैं वहां का वातावरण अपने आप शुद्ध और शांतिमय होने लगता हैं।

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