Socrates Short Stories in Hindi
सुकरात की दावत
एक बार सुकरात ने कुछ धनी लोगों को भोजन पर बुलाया। सुकरात की पत्नी ने कहा- मुझे तो ऐसा मामूली खाना खिलाने में लज्जा आयेगी। सुकरात बोले- इसमे लज्जा की कोई बात नहीं, मेहमान अगर समझदार होगें तो उन्हें खाना अरूचिकर नहीं लगेगा। और अगर अरूचिकर लगा भी तो वे सहन कर लेंगे और अगर वे बुवकुफ होंगे तो हमें शर्मिंदा होने की जरूरत नहीं ।
जब जमींदार वाइडीस ने सुकरात से क्षमा मांगी
यूनान के एक अति संपन्न जमींदार थे आलर्स वाइडीस । उन्हें अपने धन-वैभव पर बड़ा अभिमान था । एथेन में उस समय दार्शनिक सुकरात की बड़ी ख्याति थी । लोग सुकरात के ज्ञान से अत्यधिक प्रभावित थे । उनकी शिष्य संख्या भी काफी विशाल थी ।
आलर्स वाइडीस ने जब सुकरात की लोकप्रियता के विषय में सुना तो वह भी सुकरात से मिलने चला आया । सुकरात के सादगीपूर्ण रहन-सहन को देख कर उसने मुँह बिचकाया और सुकरात को अपना परिचय देकर अपनी जागीर और धन-वैभव की बात करने लगा ।
सुकरात मौन भाव से सुनते रहे । कुछ देर बाद जब चार्ल्स चुप हुआ तो सुकरात ने अपने एक शिष्य से दुनिया का एक नक्शा मंगवाया । उसे ज़मीन पर फैलाकर आर्ल्स से पुछा इसमें अपना देश यूनान कहा है ?
आर्ल्स ने नक़्शे में यूनान बता दिया । फिर सुकरात ने पूछा और अपना एरिका प्रान्त कहा है ? आर्ल्स ने बड़ी कठिनाई से प्रान्त खोजकर बताया । उसके बाद सुकरात ने पून: प्रश्न किया-इसमें आपकी जागीर की भूमि कहाँ है ?
आर्ल्स ने कहा नक़्शे में इतनी छोटी भूमि कैसे बताई जा सकती ? तब सुकरात बोले- भाई! इतने बड़े नक़्शे में जिस भूमि के लिए एक बिंदु भी नहीं रखा जा सकता, उस नन्ही सी भूमि पर तुम इतना गर्व करते हो ? सुकरात की बात सुनकर आर्ल्स के मुख पर ग्लानि का भाव प्रकट हुआ और उसने तत्काल सुकरात से क्षमा मांग ली ।
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सुकरात और उनका दर्पण
महान दार्शनिक सुकरात बदसूरत अवश्य थे लेकिन दर्पण के आगे घंटो बैठकर अपनी कुरूपता को निहारा करते थे । एक दिन जब वह दर्पण के आगे बैठे तभी उनका एक शिष्य आया और उन्हें दर्पण में निहारते देख मुस्कराने लगा । उसको मुस्कराता देख सुकरात ने कहा, ‘में जानता हूँ तुम क्यों मुस्कराए थे ।
दरअसल में कुरूप अवश्य हूँ लेकिन दर्पण देखना मेरा नित्य का नियम है । ऐसा में इसलिए करता हूँ की मुझे अपनी बदसूरती का अहसास होता रहे और में नित्य सद्कार्य करूँ ताकि सद्कार्यों से मेरी यह बदसूरती ढंकी रहे ।
तब उनका शिष्य बोला, ‘गुरुदेव ! इसका मतलब तो यह हुआ की जो सुन्दर हैं, उन्हें तो दर्पण देखने की आवश्यकता ही नहीं है ।’
सुकरात ने कहा, दर्पण तो उन लोगों को भी नित्य ही देखना चाहिए ताकि इस बात का अहसास हो की जितने सुन्दर वे हैं, उसते सुन्दर कार्य भी करें । ऐसा करने से उनके सौंदर्य पर बदसूरती का ग्रहण नहीं लगेगा । वस्तुत: गुण अवगुणों का खूबसूरती या बदसूरती से सम्बन्ध नहीं हैं ।
सुन्दर होने के साथ-साथ यदि व्यक्ति अच्छे कर्म करता है तो उसकी खूबसूरती में और अधिक निखार आता है । जब कि सुन्दर व्यक्ति यदि बुरा कर्म करे तो बुराई का ग्रहण उसकी खूबसूरती को चाट जाता है ।
Sukrat Ki Kahani Hindi
सुकरात के मौन से पत्नी का गुस्सा हुआ काफूर
यूनान के महान दार्शनिक सुकरात बहूसंख्यक लोगों के आदर और श्रध्दा के पात्र थे । वे जहाँ भी जाते, लोग उन्हें घेर-कर खड़े हो जाते और अपनी अनेक जिज्ञासाए उनके समक्ष रखते । सुकरात अत्यंत शांतिपूर्वक सभी का समाधान करते । कभी-कभार ऐसा भी होता था क़ी इतने लोगो के प्रश्नों के जवाब देते-देते सुकरात को काफ़ी देर हो जाती और वे घर देरी से पहूंचते । इस वजह से उनकी पत्नी उनसे काफ़ी नाराज रहती थी । वह बीना किसी काऱण के भी सुकरात से विवाद कर लिया करती थी, लेकिन सुकरात शांत व सहनशील थे । इसलिए वे ज्यादातर मौन ही रहते ।
एक़ दिन उनकी पत्नी किसी छोटी सी बात पर सुकरात से झगड पडी । सुकरात शांतिपूर्वक उसकी बातें सुनते रहैं । जब उसे बोलते हुए काफ़ी वक्त हो गया तो सुकरात ने सोचा क़ी थोड़ी देर के लिए घर से बाहर चलते हैं । वे जैसे ही बाहर निकलने को हुए, उनकी पत्नी का गुस्सा और अधिक बढ़ गया । उसके निकट ही गंदे पानी से भरी एक़ बाल्टी रखी हुई थी । उसने आव देखां न ताव और सुकरात पर वह बाल्टी डाल दी ।
सुकरात पुरी तरह भीग गए लेक़िन वे फिर भी वे शांत ही रहे । थोड़ी देर मौन रहने के बाद उन्होंने मुस्कराकर इतना ही कहा-घोर गर्जना के बाद वर्षा का होना तो स्वाभाविक ही था । इस घोर अपमान के बाद भी सुकरात की इस सहज परिहास पूर्ण टिप्पणी को सुनकर पत्नी का क्रोध शांत हो गया और वह चुपचाप अंदर चली गई ।