नेहरूजी के जीवन की 5 कहानिया | Pandit Jawaharlal Nehru Short Stories

Pandit Jawaharlal Nehru Short Stories

Pandit Jawaharlal Nehru Short Stories in hindi

प्रसंग – 1

वो तुम्हारा हक़ था, यह मेरा हक़ है

एक बार Pandit jawaharlal nehru को किसी कार्यवश मसूरी जाना पड़ा । स्वभावानुसार ही वह वहां बाजार में घूमने निकल गए । घूमते-घूमते वह एक वृध्द मुसलमान की दुकान पर गए । वह बेंत (छड़ी) बेचा करता था । नेहरूजी दुकान में गए और बेंत देखने लगे । एक बेंत उन्होंने पसंद भी कर ली और वृध्द से उसका मूल्य पूछने लगे ।


वृध्द बोला, ‘ आपसे क्या पैसे लेना.. आप तो सवयं रत्न हैं ।
नेहरूजी बोले, ‘ पैसे तो आपको लेने ही पड़ेंगे क्योंकि बिना पैसे दिए में यह बेंत नहीं ले जा पाउँगा ।’
वृध्द बोला, ‘ मैंने आपको शेषवस्था में अपनी गोद में खिलाया है । मुझे याद है जब में आनंद भवन जाया करता था तो आपसे तोतली भाषा में बातें किया करता था । अत: आप मेरा हक़ है ।’
नेहरूजी बोले, ‘ माना की आपका मुझ पर हक़ है लेकिन मेरा भी तो कर्तव्य बनता है ।’ यह कहते हुए उन्होंने सौ का नॉट निकाला और वृध्द की और बढाकर चले गए.

प्रसंग – 2

इसलिए पहले बुलाया

नवयुवक, राजदूत व सैनिक तीनो ही एक बार नेहरूजी से मिलने गए। जब नेहरूजी को खबर दी गई तो उन्होंने अपने सचिव से कहा की पहले नवयुवक को, फिर सैनिक को और अंत में राजदूत को भेजा जाए । 

जब वे तीनों बारी-बारी से मिलकर चले गए तब नेहरूजी के सचिव ने पूछा, ‘आपने नवयुवक को ही पहले क्यों बिुलाया ?’ 

नेहरूजी बोले, ‘देश के कर्णधार नवयुवक ही हैं । नवयुवक ही तो आगे चलकर सैनिक भी बनेंगे और पडोसी देशों से सबंध स्थापित करेंगे । दो देशों के मध्य संबंध भी वहां का वासियों की भावना के अनुसार ही बनते हैं । यही कारण था की मैंने नवयुवक को पहले बुलाया था

प्रसंग – 3

जैसे कहा, वैसा किया

पंडित जवाहरलाल नेहरू भाषण देकर सभा से उठकर जाने को थे की तभी एक चपरासी रजिस्टर लेकर आया और बोला, ‘मान्यवर, कृपया रजिस्टार में अपने सिगनेचर कर दें । 

नेहरूजी ने तुरंत अंग्रेजी में अपना नाम लिख दिया । चपरासी फिर बोला, ‘आज की तारीख भी डाल दें ।’ तब नेहरूजी ने हिंदी में तारीख लिख दी । 

यह देख वह चपरासी बोला, ‘आपने नाम तो अंग्रेजी में लिखा और तारीख हिंदी में लिखी है -ऐसा क्यों ?’
नेहरूजी तपाक से बोले, ‘मैंने वैसा ही किया जैसा आपने कहा । ‘इतना सुन्ना था की चपरासी शर्म से गड गया ।

प्रसंग – 4

चांदी की नहीं लोहे की कुदाल दो

पंडित जवाहरलाल नेहरू पंजाब में एक सिंचाई योजना का उद्घाटन करने गए हुए थे। आयोजकों ने उद्घाटन के लिए चांदी की कुदाल पकड़ा दी ।
नेहरूजी ने उस कुदाल को फेंकते हुए कहा, ‘क्या भारतीय किसान चांदी की कुदाल से काम करता है ?’ फिर उन्होंने पास में रखी लोहे की कुदाल उठाई और उद्घाटन कर दिया । व्यर्थ आडम्बर के लिए उन्होंने अधिकारीयों को फटकार भी लगाई ।

प्रसंग – 5

नेहरूजी की सादगी

पंडित जवाहरलाल नेहरू यात्रा कर दिल्ली लौट रहे थे । उनका विमान पालाम हवाई अड्डे पर पहुँचने के बावजूद ऊपर ही मंडराता रहा । कुछ देर तक नेहरूजी कुछ नहीं बोले । फिर एका-एक उठे और विमान चालक के निकट जाकर पूछा, ‘विमान को निचे उतरने में विलम्ब क्यों किया जा रहा है ?’

इस पर चालक ने सम्मान-सूचक शब्दों में कहा, ‘मुझे सूचित किया गया है की आपकी कार अभी हवाई अड्डे पर नहीं पहुँच पाई है। कार आने पर ही विमान को नीचे उतारा जाए ।’

सुनकर नेहरूजी नाराज हो गए और बोले, ‘क्या में पैदल चलना नहीं जनता ? तुरंत विमान को निचे उतारो, में पैदल ही घर चला जाऊंगा ।’ कुछ ही देर मैं विमान निचे उतरा । विमान से उतारकर नेहरूजी अपने निवास की और पैदल ही रवाना हो गए । उनके पीछे-पीछे अधिकारीयों का काफिला भी चला जा रहा था ।

प्रसंग – 6 

और नेहरू जी ने घर की पाइपलाइन कटवा दी

उस समय पं. जवाहरलाल नेहरू इलाहाबाद नगर निगम के अध्यक्ष थे । एक दिन वे कार्यालय में बैठे फाइलें देख रहे थे । उसी समय डा. अबुल फज़ल वहां आए, जो जल कर विभाग के अधीक्षक थे । उन्होंने पंडित जी से कुछ बात-चित की, फिर बड़े संकोच से बोले महोदय ! में एक फ़ाइल की और आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ, जो उन व्यक्तियों से संबंधित है जिन्होंने जल-कर जमा नहीं किया है,

नेहरूजी बोले – उनके विरुध्द कार्रवाई की जाएगी । इसलिए फाइल दीजिये । डॉ. फजल ने उन्हें फाइल देते हुए कहा इसमें आपके पिताजी का भी नाम है । नेहरूजी ने यह सुनकर भी सहज भाव से फाइल का अध्यन किया । उन्होंने देखा की कई संभ्रांत लोगों ने जल कर जमा नहीं किया है ।
डॉ. फजल बोले-पंडितजी ! इस फाइल में अनुशंसा है की जिन्होंने नियम का उल्लंघन किया है उनकी जलापूर्ति बंद कर दी जाए । पं नेहरू ने कहा कानून सभी के लिए बराबर है । और उन सभी घरों की जलापूर्ति बंद कर दी गई ।

शाम को जब नेहरूजी घर पहुंचे तो देखा की घर में पिने का पानी नहीं है और पिता मोतीलाल नेहरू क्रोध से बरमदे में टहल रहे हैं । नेहरूजी को देखते ही वे बोले यह क्या किया जवाहर, अपने ही घर की पानी की लाइन बंद करवा दी ? पंडित जी ने कहा- जल-कर जमा कीजिए, अभी लाइन मिल जाएगी । पुत्र की कर्तव्यनिष्ठा देख पिता का क्रोध शांत हो गया और उन्होंने जल-कर की राशि की ।

जब नेहरू जी ने पत्तल पर किया भोजन

बात 1926 की है । नेहरू जी देशभर में घूमकर युवकों को स्वतंत्रता की प्रेरणा दे रहे थे । एक बार वह छात्रों के निमंत्रण पर उत्तर-प्रदेश के छोटे से कस्बे खुर्जा में गए । उनके भाषण के बाद उन्हें भोजन के लिए विशेष रूप से सजे पंडाल में ले जाया गया । वहां की चमक-दमक देखकर वे हैरान रह गए ।

उन्होंने कहा–“इस कार्यक्रम का आयोजन छात्रों ने किया है न, क्या वे ऐसा ही भोजन करते हैं । यह सुनकर वहां खड़े लोगों के चहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं । तब एक छात्र ने पास आकर कहा–“हम तो छात्रावास में भोजन करते हैं ।” “तो मुझे भी वहीँ ले चलो ।

में भी आज तुम सबके साथ भोजन करूँगा ।” नेहरू जी ने कहा और छात्रों के साथ फर्श पर बैठकर पत्तल पर भोजन किया ।

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