Importance Of Om, Swastik, Kalash, Ganesh in Vastu Shastra
- वास्तु सूचक शुभ-अशुभ प्रतीक
Importance of Hindu vastu symbols for home in Hindi – वास्तुशास्त्र में शुभ-अशुभ चित्रों, प्रतिमाओं या चिन्हों आदि का महत्व बतलाया गया है। इन प्रतीकों का मानवीय जीवन पर अनुकुल-प्रतिकुल प्रभाव अवश्य पडता है। अधिकतर देखा गया हैं कि लोग घर के मुख्य द्वार के उपर गणेशजी का चित्र, लघु प्रतिमा या द्वार के दोनों ओर की दीवारों पर मंगल-कलश जो नारियल युक्त होता है, अथवा स्वस्तिक चिन्ह बनाते हैं, इनके पीछे लोगों की आस्था तो होती ही हैं साथ ही इनमें वैज्ञानिकता भी छिपी है।
हिन्दू संस्कृति में जो कुछ भी सेद्धांतिक बातें देखने को मिलती हैं उनमें वैज्ञानिकता का पुट अवश्य होता है। घर के द्वार पर या द्वार की दीवारों पर प्रतीक अंकन का भी यही कारण है। ऐसा माना जाता हैं कि इन प्रतीकों के माध्यम से दुषित वायु से बचा रहता है।
Why we Should Have To Use Om, Swastik Kalash etc in Home
वास्तुशास्त्र में गणेश जी का प्रतीक
घर के मुख्य द्वार पर गणेश प्रतिमा की परंपरा राजस्थान व महाराष्ट में खासकर देखने को मिलती है। वहां न केवल घर के द्वारों पर ही बल्कि मंदिरों के मुख्य द्वार पर भी गणेश प्रतीमा के दर्षन होते हैं। गणेश पर्व भी वहा धूमधाम से मनाया जाता है।
गणेश सभी देवताओं में अग्रपुज्य हैं, आठों सिद्धियों व नौ नीधियों के दाता गणेश ही है। कोई भी मांगलिक कार्य गणेश पूजन के बिना संभव नहीं होता। यह मंगलकारी देव हैं। बुद्धि और विधा के भी दाता है। घर के मुख्य द्वार पर गणेश प्रतिमा स्थापना कर उसका नित्य पूजन करने से उस घर में सभी प्रकार का मंगल रहता है। परिवार के सदस्य प्रसन्नचित्त व बच्चे कुशाग्र बुदि के होते हैं। लक्ष्मी की कृपा तो उस घर पर बनी ही रहती है।
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वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक का प्रतीक
शास्त्रों में स्वस्तिक को गणेश का ही रूप माना गया है। किसी भी मांगलिक कार्य में स्वस्तिक का भी उतना ही महत्व हैं जितना गणेश पूजन का। जिस घर के द्वार की दीवारों पर स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहता है वहां किसी भी प्रकार की दुषित वायु का प्रभाव नहीं होता।
दुषित वायु का यहां तात्पर्य भूत-प्रेत, टोने-टोटकों आदि से समझना चाहिए। अधिकतर देखा जाता हैं कि जब घर में किसी बच्चे का जन्म होता हैं तब साथीया या स्वस्तिक पूजन किया जाता है। आजकल तो स्वस्तिक को गले में धारण करने का भी प्रचलन है। जिस बच्चे के गले में स्वस्तिक पडा रहता हैं उसे किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होता।
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वास्तुशास्त्र में मंगल कलश
मंगल कलश नारियल युक्त व तांबे का होता है। जिस पर प्रायः स्वस्तिक चिन्ह अंकित रहता है। यह भी गणेश व स्वस्तिक की भांति मंगलकारी माना गया है। देवपूजन में कलश या घटस्थापना भी इसी का रूप है। गणेश पूजन के साथ मंगल कलश का भी पूजन किया जाता है।
ऐसा माना गया हैं कि जलपूरित मंगल कलश जिस घर के द्वार पर लटका रहता हैं वहां धन-धान्य का कभी अभाव नहीं रहता। जलपूरित कलश या घट वैसे भी शुभ माना जाता है। लोगों की ऐसी मान्यता हैं कि घर से निकलते समय यदि पनीहारी सिर पर जल से भरा मटका लेकर जाती हुई मिले तो यह शुभ- शगुन होता है अर्थात जिस कार्य की सिद्धि के लिए व्यक्ति कहीं जा रहा होता हैं तो उसका वह कार्य सिद्ध होता है।
वास्तुशास्त्र में प्रणव ओम का प्रतीक
श्रीमदभागवत पूराण में ओम या प्रणव की उत्पत्ति नाद में बतलाई गयी है। ओम में ही ब्रम्हा, विष्णु, महेश का वास माना गया है। वेदों में प्रणव की महिमा गायी गयी है। किसी भी शुभ कार्य का प्रारंभ ओम के उच्चारण से किया जाता है। ओम आदि शब्द ब्रम्हा का प्रतीक भी है।
अन्य शुभ प्रतीकों के साथ-साथ ओम का अंकन घर के मुख्य द्वार पर किया जाये तो इससे अमंगल दूर होते हैं। अक्सर देखा जाता हैं कि लोग घर के द्वार की दीवारों पर दोनों तरफ स्वस्तिक मंगल कलश और प्रणव के चित्र बनाते हैं साथ ही मुख्य द्वार के उपरी भाग पर गणेश प्रतिमा स्थापित करते हैं या फिर गणेश का चित्र ही बनवा लेते हैं यह सभी शुभ प्रतीक हैं और अंमंगलों को दूर कर मंगल करते हैं।
जिस घर के द्वार पर ऐसे प्रतीक बने हो वह घर हर प्रकार से सुरक्षित रहता है। इनके अतिरिक्त घर के भीतर युद्ध से संबधित चित्र, लकडी पत्थर से बनी राक्षसी प्रतिमाएं रोते हुए व्यक्ति का चित्र नहीं लगाना चाहिए। इसी तरह कबतुतर कौआ, सर्प, गिद, उल्लू या किसी भी हिसंक पशु-पक्षी की तस्वीर घर में नहीं लगाना चाहिए। घर की दीवारों पर धार्मिक, सौम्य चित्र आदि ही लगायें। चित्र एक-दूसरे के ठीक सामने न हो इसका भी विशेष ध्यान रखें।
वास्तुशात्र शुभ अशुभ प्रतीकों का महत्व
घर में पूर्वजों के चित्र नैऋत्य कोण दक्षिण-पष्चिम दिषा में ही लगाने चाहिए। घर के मुख्य द्वार पर त्रिषुल, स्वस्तिक, ओम एक साथ रखने से अमंगल का नाष होता है। यह तीनों शुभ प्रतीक हैं।