Meditation+Patience = Success
एक शिष्य गुरु के पास गया हुआ था सुयश उसका नाम था। उसने अपने गुरू से पूछा क्या ध्यान काफी नहीं है। फिर यह धैर्य बीच में क्यों। साधु तो जीवन से भागते नहीं वे तो जीवन में ही रहते हैं।
गुरू एक मांझी था वह लोगों को एक किनारे से दूसरे किनारे पर पहुचाने का काम करता था ऐसे भी गुरू मांझी है इसलिए जैनों ने अपने महागुरू को तीर्थंकर कहा है।
तीर्थंकर का मतलब होता है मांझी। तीर्थंकर का मतलब है जिनके द्वारा तुम उस पार पहूंच जाते हो। तीर्थ का अर्थ है घांट तीर्थंकर का अर्थ होता है जो पहूचां दे इस घांट से उस घांट ।
वह गुरू सुयश का मांझी था तीर्थंकर था ऐसे बाहर की दुूनिया में भी वह लोगों को एक घाट से दूसरे घाट पहुंचाता था भीतर की दुनिया में भी उसका वही काम था। उसने सुयश से कहा मैं उस तरफ जा रहा हूं कुछ यात्री पहुचाने है तु भी आजा। और कौन जाने रास्तें में तेरा समाधान हो भी जाये।
सुयश थोडा चकित हुआ क्यो कि समाधान तो यहीं किया जा सकता है इसमें नदी में जाने और नांव में बैठने की क्या जरूरत । गुरू दो पतवार लेकर नावं चलाता है लेकिन उस दिन उसने एक पतवार अन्दर रख दी।
नाव जैसे ही मंझदार में पहूंची वह एक ही पतवार से चलाने लगा। नांव गोल गोल घुमने लगी अब एक ही पतवार से नावं चलाओंगे तो नावं घुमने लगेगी संतुलन खो जायेगा।
अगर तुम बाएं हाथ की पतवार से नावं चला रहे हो तो बायी तरफ नाव घुमने लगेगी और चक्कर खाने लगेगी। यात्री चिल्लायें क्या तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है मांझी क्योंकि यात्रियों को तो कुछ पता नहीं यह तुम क्या कर रहे हो। ऐसे तो हम कभी न पहुचंगेे । गुरु ने सुयश से कहा बोल एक पतवार से पहुचंना हो सकता है या नहीं ।
उसने कहा एक से पहुचना मुश्किल होगा गुरू ने कहा तो दोनों पतवार को गौर से देख । एक पतवार पर उसने लिखा था ध्यान और एक पर धैर्य ।
समझो थोडा अगर आदमी अकेला ध्यान करे और धैर्य न होतो कभी ध्यान भी न हो पायेगा क्योंकि वह जल्दी में होगा। मिल जाये करने के पहले ऐसा आदमी का मन है। बिना किये मन है ऐसी आदमी की आकांक्षा है। फल हाथ लग जाये कर्म न करना पडे । अकेला ध्यान बिना धैर्य जमेगा ही नहीं बनेगा ही नहीं । अकेला धैर्य बिना किसी ध्यान के किसी अर्थ का नहीं सिर्फ आलस्य है।