Mahatma Gandhi Stories in Hindi
प्रसंग 1 – व्यर्थ का खर्च
मितव्ययिता की सीख
गांधीजी भोजन के साथ शहद का भी नियम पूर्वक सेवन करते थे । एक बार उन्हें लंदन के दौरे पर जाना पड़ा । मीरा बहन भी साथ जाया करती थीं, इत्तफाक से लंदन दौरे के समय वह शहद की शीशी ले जाना भूल गई ।
मीरा बहन ने शहद की नई शीशी वहीँ से खरीद ली । जब गांधीजी भोजन करने बैठे तो नई शीशी देख कर मीरा बहन पर बिगड़ गए और बोले, ‘तुमने यह नई शीशी क्यों मंगवाई ?
मीरा बहन ने डरते हुए कहा, ‘बापू में शहद की वह शीशी लाना भूल गई थी ।’ बापू बोले’ यदि एक दिन में भोजन न करता तो क्या मर जाता ? तुम्हें पता होना चाहिए की हम लोग जनता के पैसे से जीवन चलाते हैं और जनता का एक-एक पैसा बहुमूल्य होता हैं । वह पैसा फिजूल खर्च नहीं करना चाहिए ।’
प्रसंग 2 – समय की कीमत
तुम वाकर तो में भी वाकर
दांडी यात्रा के समय बापू एक स्थान पर शंभर के लिए रुके । जब वह चलने को हुए तो उनका एक अंग्रेज प्रशंसक उनसे मिलने आया और बोला, ‘हेल्लो मेरा नाम वाकर है ।’ चूँकि बापू उस समय जल्दी में थे, इसलिए चलते हुए ही विनयपूर्वक बोले, में भी तो वाकर हूँ । इतना कहकर वह जल्दी-जल्दी चलने लगे ।
तभी एक सज्जन ने पुछा, ‘बापू यदि आप उससे मिल लेते तो आपकी प्रसिध्दि होती और अंग्रजी समाचार-पत्रों में आपका नाम सम्मानपूर्वक छपता । बापू बोले मेरे लिए सम्मान से अधिक समय कीमती है ।
प्रसंग 3 – शांत मन
गांधी जी का हास्य –बोध
एक बार की बात है, गांधीजी एक सभा में भाषण दे रहे थे । तभी कुछ लोग जो पीछे बैठे थे, जोर-जोर से चीखने लगे, हमें आपका भाषण सुनाई नहीं पड़ रहा । इस पर गांधीजी मुस्कराकर बोले, ‘जो लोग मेरी आवाज़ नहीं सुन पा रहे हैं, वे अपना हाथ ऊपर कर लें ।’ तभी पीछे बैठे कुछ लोगों ने अपने हाथ ऊपर कर लिए ।
गांधीजी कुछ देर तक मौन हो उन्हें देखते रहे । फिर उनकी मूर्खता पर मुस्कराते हुए बोले, जब आप लोगों को मेरा भाषण सुनाई नहीं दे रहा है, तो मेरी यह आवाज़ कैसे सुन ली ।’ गांधीजी की बात सुनकर सभी श्रोता शांत हो गए और चुपचाप उनका भाषण सुनने लगे ।
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प्रसंग 4 – अच्छे कर्म
कर्म बोओ, आदत काटो
गांधीजी एक छोटे से गांव में पहुंचे तो उनके दर्शनों के लिए लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी । गांधीजी ने लोगों से पुछा, इन दिनों आप कौन सा अन्न बो रहे हैं और किस अन्न की कटाई कर रहे हैं ?’
भीड़ में से एक वृध्द व्यक्ति आगे आया और करबद्ध हो बोला, ‘आप तो बड़े ज्ञानी हैं । क्या आप इतना भी नहीं जानते की ज्येष्ठ (जेठ) मॉस में खेंतो में कोई फसल नहीं होती । इन दिनों हम खाली रहतें हैं ।
गांधीजी ने पुछा, जब फसल बोने व काटने का समय होता है, तब क्या बिलकुल भी समय नहीं होता ?’
वृध्द बोला, ‘उस समय तो रोटी खाने का भी समय नहीं होता ।
गांधीजी बोले, ‘तो इस समय तुम बिलकुल निठल्ले हो और सिर्फ गप्पें हाँक रहे हो । यदि तुम चाहो तो इस समय भी कुछ बो और काट सकते हो ।’ गाँव वाले बोले, ‘कृपा करके आप ही बता दीजिये की हमें क्या बोना और क्या काटना चाहिए ?’
गांधीजी गंभीरतापूर्वक बोले, ‘
आप लोग कर्म बोइए और आदत को काटिए,
आदत को बोइए और चरित्र को काटिए ।
चरित्र को बोइए और भाग्य को काटिए ।
तभी तुम्हारा जीवन सार्थक हो पायेगा ।
प्रसंग 5 – माफ़ी नहीं तो साथ नहीं
गांधीजी के एक अनुयायी थे आनंद स्वामी, जो सदा उनके साथ ही रहा करते थे । एक दिन किसी बात को लेकर उनकी एक व्यक्ति से तू-तू, में-में हो गई । वह व्यक्ति कुछ दीन-हीन था । आनंद स्वामी को जब अधिक क्रोध आया तो उन्होंने उसको एक थप्पड़ मार दिया ।
गांधीजी को आनंद स्वामी की यह हरकत बुरी लगी । वह बोले, ‘यह एक सामान्य-सा व्यक्ति है, इसलिए तुमने इसे थप्पड़ रसीद कर दिया । यदि यह बराबर की टक्कर का होता तो क्या तुम्हारी ऐसी हिम्मत होती ? चलो, अब तुम इससे माफ़ी मांगो ।’
जब आनंद स्वामी उस व्यक्ति से माफ़ी माँगने को राजी न हुए तब गांधीजी ने कहा, ‘यदि तुम अन्याय-मार्ग पर चलोगे तो तुम्हे मेरे साथ रहने का कोई हक़ नहीं है ।’
अंतत: आनंद स्वामी को उस व्यक्ति से माफ़ी मांगनी ही पड़ी ।
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