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( votes)Guru Or Shishya Ki Kahani
गुरु बनाम शिष्य चुनौती
युवक शिष्य का दीक्षा काल समाप्त होने वाला था निकट भविष्य में वह भी किसी आश्रम का संचालन करेगा। आश्रम छोडने से पहले वह यह जान लेना चाहता हैं कि वह अपने गुरु को भी चुनौती देने या परास्त करने में सक्षम हैं या नहीं ?
वह एक छोटी सी चिडीयां को अपने हाथ पर भींच कर अपनी पीठ की ओर करके गुरु से पुछता है- गुरुदेव मेरे हाथ मे एक चिडीया हैं क्या आप बता सकते हैं कि वह जीवित हैं अथवा मृत है?
शिष्य की योजना इस प्रकार थी – कि यदि उसके गुरु चिडीया को मृत बतायेंगे तो वह अपना हाथ खोल देगा और चिडीया उड जायेगी, और यदि गुरु चिडीयां को जीवित बतायेंगे तो वह चिडीया की गर्दन दबाकर उसे मार देगा।
इस प्रकार किसी भी स्थिति में वह अपने गुरु को गलत सिद्ध कर देगा। गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा- पुत्र यह तो तुम पर ही निर्भर करता हैं।
गुरु का उत्तर सुनकर शिष्य ने अपना सर झुका लिया
गुरु का मार्गदशर्न और शिष्य का संकल्प
गुरु वह जो जगा दे, परम से मिला दे, दिशा बता दे, खोया हुआ मिला दे, पुकारना सीखा दे, आत्मपरिचय करा दे, मार्ग दिखा दे और अंत में अपने जैसा बना दे। लेकिन याद रखना गुरु मार्गदर्शक हैं चलना तो स्वयं ही पडेगा।
हैं गुरुदेव आपका पावन सान्निध्य पाकर मेरा मोह नष्ट हो गया हैं, मैं अपने आत्म स्वरूप को उपलब्ध हो गया हूं। आपकी कृपा के प्रसाद से मेरे समस्त अज्ञान, मोह व भ्रम टूट गये है।
और मुझे बोध हो गया हैं कि मैं अमर-अमर नित्य, अविनाशी, अविकारी, ज्योतिर्मय, तेजोमय, शांतिमय आत्मा हूं। अब मैं अपने स्वरूप में तेरा प्रतिरूप देख रहा हूं। है! योगेश्वर, है गुरुदेव अब मैं आपके वचन का संदेहरहित होकर पूर्णरूप से पालन करूंगा।