Ek Sadhe Sab Sadhe
Why Common Man Becomes Failure in Life
बचपम में मैंने एक कहानी पढी थी – एक महीला के बेटे को लडडू खाना बहुत पसंद था। और उस महिला ने लडडू बानाकर एक छोटे मूंह वाले बर्तन मे रखकर छिपा रखे थे। इच्छा होने पर बेटे ने लडडू का वह बर्तन ढूंढ निकाला। लडडुओं की खुशबु से वह बालक मस्त हो गया।
भूख से ज्यादा इतने लड्डु देखकर उसे लोभ जागा। उसने अपने दोनो हाथ उस बर्तन में घुसेड दिये। और उनमें जितने लडडू समा सकते थे, भरकर मुट्ठियां भीच ली। लेकिन अब उसके खुली-खुली मुट्ठियों वाले हाथ बर्तन के सकरें मूंह से बाहर ही नही आ रहे थे। # ek sadhe sab sadhe cause of unhappiness.
बालक लडडू छोडना नही चाहता था। और हाथ उस स्थिति में बाहर आ नही सकते थे। बालक ने जोर आजमाइश भी कर डाली। फलस्वरूप उसके हाथों की चमडी कईं जगह से छील गयी और उसे दर्द होने लगा वह बालक रोने लगा। मां दौडी आई। बेटे ने आंसुओं से भरी अपनी आंखों से, हंसती हुई मां की ओर देखकर कहा – मां मेरे हाथ बाहर निकालों।
मां ने बच्चे के सिर और पीठ पर हाथ फेरते हुए कहा – बेटा! अपनी अवश्यकता और स्थितियों के अनुसार युक्तियों का भी प्रयोग करो। एक बार में इस बर्तन में एक ही हाथ डालों और एक-एक करके चाहे जितने लडडू निकाल लो। सारे लड्डू एक साथ निकालना चाहोगे, तो एक भी नही निकाल पाओगे।
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यह तो एक कहानी ही हैं लेकिन यह छोटी सी कहानी अति-महत्वकांक्षा, लड़के-लड़ियों और ऐसे लोगेां की मानसिकता पर करारा व्यंग भी है। यह लोगों की एक मानसिक कमजोरी ही नहीं, यह उनका एक मानसिक रोग भी है। जरूरतों की पूर्ति करना, हमारा कर्तव्य हैं, लेकिन जरुरत से ज्यादा संग्रह करने के लिए दौड-धूप करना लोभ है। ऐसा लोभ, मानव की नैतिकता और शान्ति को समाप्त कर उसे विक्षिप्त तक बना देता है।
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आपको जो चाहिए जितना चाहिए और जिस रूप में चाहिए – अगर इसका ज्ञान आपको नही हैं और फिर भी आप उसे पाने के लिए प्रयासरत हैं, तो आप मूर्ख हैं। आपकी पारिवारिक और सामाजिक शिक्षा अपूर्ण और अधकचरी है।
यह अशिक्षा आपको शरीरिक दुःख, अभावो और मौत के मूंह में धकेल सकती है। एक पूर्ण व्यक्ति वही हैं जो इस बात को समझे । हमारे सारे दुखों की जड़ यही हैं, जरुरत से ज्यादा पाने की चाह – लोभ ।
हमें अगर कुछ मिलता हो तो हम चाहेंगे की हमें और मिलें, हमें जो मिलता हैं उसमें हम कभी संतुष्ट होते ही नहीं । ज्यादा से ज्यादा पाने की चाह में लगे रहते हैं और अपने जीवन को विक्षिप्त कर बैठते हैं ।
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