जैसा की हम सब जानते हैं हिन्दू धर्म में वास्तु का बड़ा महत्व माना जाता है। बिना वास्तु शास्त्र को देखे बगेर किसी मकान, दुकान आदि किसी भी नए कार्य को नही किया जाता। इस वास्तु में दिशाओं का भी बहुत महत्व माना जाता हैं। हर एक दिशा का अपना एक महत्व व प्रभाव होता हैं। आज के समय में व्यक्ति इन सब चीजों पर गौर नही कर रहा हैं जिसके चलते 90% लोग किसी न किसी बात से परेशान रहते हैं, उन्ही किसी न किसी चीज की कमी व चिंता सताए रहती हैं।
अगर मकान का कार्य पूर्ण वास्तु शास्त्र के मुताबिक किया जाते तो यह समस्या बिलकुल नही आती, बल्कि ऐसे योग बनने लगते हैं जिससे धन भी आने लगता हैं। पुरे घर में खुशाली छा जाती हैं। यहां हम आपको वास्तु शास्त्र में दिशा के महत्व के बारे में बताएंगे। उत्तर, पूर्व, पश्चिम और दक्षिण दिशा के क्या-क्या प्रभाव होते हैं आदि।
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Direction in Vastu Shastra Meaning & Effects Disha
पूर्व दिशा जिस दिशा में सूर्योदय होता है, वह पूर्व दिशा कहलाती है। इस दिशा को प्राची भी कहते हैं। इस दिशा का स्वामी इंद्र व ग्रह सूर्य है। पितृ स्थान की सूचक यह दिशा अग्नि तत्व को प्रभावित करने वाली होती है। इस दिशा को अवरुद्ध कर देने से सूर्य की किरणे उस घर में नहीं पड़ती।
फलतः नाना प्रकार के रोग उस घर में बसेरा कर लेते हैं। साथ ही उस घर में रहने वाले व्यक्ति का भाग्य भी अवरूद्ध हो जाता है। जहां उसके मान सम्मान को ठेस पहुंचती है, वही वह ऋण के बोझ तले दबा रहता है। आय के साधन लड़खड़ाने लगते हैं। इसलिए घर में सूर्य की रोशनी आने देना चाहिए।
पश्चिम दिशा का वास्तु दोष West Direction
वास्तु शास्त्र दिशा – जिस दिशा में सूर्य अस्त होता है, वह पश्चिम दिशा कहलाती है। इस दिशा को प्रतीची भी कहते हैं। इस दिशा का स्वामी वरुण और ग्रह शनि है। पश्चिम दिशा वायु तत्व को प्रभावित करने वाली कही गई है। जिस घर का मुख्य द्वार इस दिशा में होता है, उस ग्रह स्वामी का चित सदैव चलायमान रहता है।
वह एक के बाद एक काम बदलता रहता है, फिर भी उसे सफलता अर्जित नहीं होती। ऐसे घर में रहने वाले बच्चों की मानसिकता भी प्रभावित होती है। उनकी शिक्षा में बाधाएं आती है तथा वे मनोसंताप से ग्रस्त रहते हैं। ऐसे घर में धन का ठहराव नहीं होता और ग्रह स्वामी को उत्थान की दिशा में विशेष श्रम करना पड़ता है, तब कहीं अपूर्ण सफलता मिलती है।
उत्तर दिशा (North Direction) का दोष
सूर्य के सामने मुंह करके खड़े होने पर बाईं (Left) ओर जो दिशा पड़ती है वह उत्तर दिशा कहलाती है। यह ध्रुव तारे की भी दिशा है। इस दिशा के स्वामी कुबेर व चंद्रमा है तथा ग्रह बुध है। जिस प्रकार कुबेर धन का देवता है उसी तरह यह दिशा भी धन की स्थिरता की सूचक है।
वास्तु शास्त्र दिशा – इसे मात्रसूचक व जल तत्व को प्रभावित करने वाली दिशा के रूप में भी जाना जाता है। गृह निर्माण के समय उत्तर दिशा को खाली रखना चाहिए। चिंतन, मनन, अध्ययन, अध्यापन, अध्यात्म आदि कार्य इस दिशा की ओर मुंह करके करने से लाभ रहता है।
जिस घर का द्वार उत्तर मुखी हो वह धन-धान्य का कभी अभाव नहीं होता। यदि इस दिशा में द्वार ना हो तो खिड़की ही रखने से भी वैसा ही लाभ प्राप्त किया जा सकता है। वास्तु शास्त्र में उत्तर दिशा का विशेष महत्व बताया गया है।
दक्षिण ( South ) दिशा का वास्तु इन हिंदी
सूर्य के सामने मुंह करके खड़े होने पर दाएं (Right) हाथ की ओर जो दिशा पड़ती है वह दक्षिण दिशा कहलाती है। इस दिशा का स्वामी याम व ग्रह मंगल है। यह दिशा पृथ्वी तत्वीय व मानव जीवन को प्रभावित करने वाली दिशा है। इस दिशा से शत्रु भय रहता है। इस दिशा में गृह निर्माण नहीं करना चाहिए। यदि इस दिशा में खिड़की दरवाजा हो तो उसे यथासंभव बंद ही रखें।
ईशान कोण इन वास्तु शास्त्र (उत्तर-पूर्व दिशा) North East
उत्तर पूर्व दिशा का मध्य भाग ईशान कहलाता है। कोण को ही विदिशा कहते हैं। इस विदिशा कोण के स्वामी स्वयं भगवान शिव हैं तथा ग्रह बृहस्पति है। यह कोण अतिपवित्र माना गया है। इस को पवित्र रखने से देवी शक्तियों की कृपा प्राप्त होती है।
ईशान कोण में रहने वाला व्यक्ति धनवान यशस्वी वह सब प्रकार से होता है। इसके विपरीत इस कोण को अपवित्र रखने से प्रतिकूल प्रभाव होता है। घर में अशांति, मानसिक वेदना, बुद्धिभ्रम जैसे दुखद परिणाम मिलते हैं। ऐसा माना गया है कि ईशान कौन को अपवित्र रखने से कन्या संततियां अधिक होती है। पुत्र होते भी है तो वह अल्पायु ही रहते हैं और मर जाते हैं।
आग्नेय कोण दिशा का वास्तु (दक्षिण-पूर्व दिशा) South East
वास्तु शास्त्र दिशा – दक्षिण पूर्व दिशा का मध्य भाग आग्नेय कोण कहता है। इस कोण के स्वामी अग्नि देव है तथा ग्रह शुक्र है। इस कोण का नाम भी अग्नि के कारण ही रखा गया है। वास्तु शास्त्र अनुसार इस कोण में सदैव रसोईघर होना चाहिए।
वास्तु शास्त्र अग्नि कोण– यह भी तथ्य है कि प्रत्येक मास का पहला दिन भी अग्नि तत्व होता है। अग्नि को भी सदैव पवित्र रखना चाहिए। इसके अपवित्र होने पर उस घर में रहने वाले सदस्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अग्नि दुखान्तिका से भी नकारा नहीं जा सकता। शास्त्र प्रमाण अनुसार अग्नि का उपासक दीर्घायु व सर्वर सुख में संपन्न होता है।
नैऋत्य कोण का वास्तु शास्त्र (दक्षिण-पश्चिम दिशा) South West
दक्षिण-पश्चिम दिशा का मध्य भाग नृत्य नैरित्य कोण कहलाता है। इस कोण के देवता या स्वामिनी नैऋत्य राक्षसी है। इसी के नाम पर इस कोण को नैरित्य कोण कहा जाता है। इस कोण के ग्रह राहु व केतु है। इस कोण को कभी भी खाली नहीं छोड़ना चाहिए और ना ही निर्माण कार्य करना चाहिए।
वरन पेड़ पौधे लगाने चाहिए। इससे दूषित वायु या शक्तियों का प्रभाव नहीं रहेगा, क्योंकि यह कोण आसुरी शक्तियों का है। यदि इस कोण में आसुरी शक्तियां बलवती हो जाती है तो उस घर में रहने वाले सदस्यों को एक के बाद एक बाधाओं को झेलना पड़ता है। संभव है किसी की अल्प आयु में मृत्यु हो जाती है।
वायव्य कोण का वास्तु (उत्तर-पश्चिम दिशा) North West
उत्तर पश्चिम दिशा का मध्य भाग वायव्य कोण कहलाता है। इस विदिशा या कोण का स्वामी वायु है इसी के नाम पर इस कोण को वायव्य कोण कहा जाता है। इसका ग्रह चंद्रमा है। इस विदिशा या कोण को पवित्र रखने से आयु स्वास्थ्य शक्ति की प्राप्ति होती है।
इसके विपरीत यह कौन दूषित होने पर शक्ति, आयु, स्वास्थ्य पर गलत असर होता है। अपने ही लोग परायों जैसा व्यवहार करने लगते हैं। प्राय: देखा गया है कि ऐसे स्थान पर बने मकान में रहने वाले लोग घमंडी होते हैं साथी अभी अविश्वासी भी।
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