Confucius Story The Real King
सम्राट कौन
एक बार कन्फ्यूशियस बैठा था तभी उनके सामने से सम्राट की सवारी गुजरी। सम्राट उसे देखकर ठहर गया, फिर उसने पूछा तुम कौन हो? कन्फ्यूशियस ने कहा मैं सम्राट हूं। सम्राट चोंका फिर उसने कहा तुम कैंसे सम्राट हो, जंगल में बैठे हो फिर भी अपने को सम्राट कहते हो ।
इस पर कन्फ्यूशियस ने पूछा- तुम कौन हो ? सम्राट के सवाल का मतलब नहीं समझ में आया। उसने सोचा कि उसके लाव लश्कर को देखकर ही समझ जाना चाहिए था। की वह कौन है, फिर भी उसने अनबने भाव से जवाब दिया मैं असली सम्राट हूं।
यहां जंगल में बैठकर तुम खुद को सम्राट कहते हो इस तरह अपने बारे में भ्रम पालना ठीक नहीं। कभी तुम संकट में भी पड सकते हो, यह गलत फेहमी दूर कर लो। कन्फ्यूशियस ने मुस्कुराते हुए कहा- सेवक उसे चाहिए जो आलसी होता है, मैं आलसी नही हूं, इसलिए मेरे साम्राज्य में सेवक की जरूरत नही है।
सेना उसे चाहिए जिसके शत्रु हो, पर दुनिया में मेरा कोई शत्रु नहीं। इसलिए मेरे साम्राज्य में सेना की भी कोई आवश्यकता नही है। धन और वैभव उसे चाहिए जो दरिद्र हो मैं दरिद्र नहीं इसलिए मुझे धन, सपंत्ति की भी जरूरत नहीं हैं।
यह जवाब सुनकर सम्राट का सिर झुक गया। असली सम्राट इसे ही कहते हैं ।
निर्भीकता
एक दिन सूर्यास्त के बाद शिवाजी ने दूर्ग के द्वार पर पहूंचकर द्वारपाल से कहा- द्वार खोलो। द्वारपाल ने कहा- सूर्यास्त के बाद द्वार नही खुलेगा। शिवाजी को बाहर ही रात गुजारनी पडी।
सुबह उन्होंने द्वारपाल को दरबार में बुलाकर द्वार न खोलने का कारण पूछा तो उसने जवाब दिया- महाराज जब आप ही अपने आदेश का पालन नही करेंगे तो प्रजा क्या करेगी? शिवाजी उसकी कर्तव्यनिष्ठा और निर्भीकता से बेहद प्रभावित हुए। और फिर उन्होंने उसे अपना अंगरक्षक भी बना लिया।