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( votes)पंचतंत्र कथा स्टोरी
किसी सागर के किनारे से थोडी दूर पर एक बडा वृक्ष था, जिस पर एक बंदर रहता था। उस सागर में रहने वाला एक बडा मगरमच्छ एक दिन उस वृक्ष के नीचे ठण्डी-ठण्डी हवा का आनंद ले रहा था। बंदर ने अपने घर आये मेहमान को देखा तो उससे मित्रता कर ली।
बंदर अपने मित्र के लिए इस वृक्ष पर से ताजी और पकी हुई जामुने लेकर आया जिसे खाकर मगरमच्छ बहुत खुश हुआ। ऐसे ही इन दोनों मे मित्रता बढ़ने लगी, अब तो मगरमच्छ रोज ही उस बंदर के पास आता और मीठे-मीठे जामुन खाता और फिर कुछ जामुन अपनी पत्नी के लिए भी ले जाता।
मगरमच्छ की पत्नी ने ऐसे मोटे जामुन कभी नहीं खाये थे, वह आश्चर्य से पुछने लगी- हे प्राणनाथ ऐसे मोटे जामुन तुम कहां से लाते हो ? प्रिये मेरा एक मित्र बंदर हैं वही मुझे रोज यह जामुन लाकर देता है। वाह! जो बंदर इतने मीठे जामुन खाता हैं उसका अपन कलेजा कितना मीठा होगा, मुझे तो उसका कलेजा खाने को ला दो, जिसे खाकर मैं सुंदर और अमर हो जाउं।
प्रिये ऐसी बात मत कहो वह तो मेरा भाई बन गया है, फिर हमें फल लाकर देता हैं, भला कोई ऐसे मित्र को भी कभी मारता है। मगरमच्छ की बात सुनकर उसकी पत्नी को क्रोध आ गया, वह बोली- मैं सब समझ गयी जिसके पास तुम जाते हो वह बंदर नहीं कोई बदरीया हैं तुम उससे प्रेम करते हो।
नहीं, नहीं प्रिये ऐसा मत कहो मैं झुठ नहीं बोलता तुम मुझ पर विश्वाश करो। नहीं मुझे तुम्हारी बात पर बिलकुल विश्वाश नहीं। यदि यह सत्य नहीं हैं तो तुम जाकर उसका कलेजा लाओं नही तो याद रखो मैं भूखी रहकर अपनी जान दे दूंगी।
Panchatantra Magarmachh Aur Bandar Ki Story
मगरमच्छ बहुत दुखी हो गया। वह सोचने लगा कि क्या करूं। अपने मित्र को कैसे मारूं यह मेरी पत्नी तो पागल हो गई हैं लेकिन फिर भी बेचारा दुखी मन से बंदर के पास पहूंचा।
बंदर न उसे उदास देखकर पूछा- अरे यार क्या बात है? आज तुम इतने उदास क्यो हो? मीठी-मीठी बातें भी नहीं सुना रहे हो। मेरे भाई तुम्हारी भाभी ने मुझसे कहा हैं कि तुम बहुत बडे पापी हो जो रोज-रोज मित्र के पास जाकर खाते हो ? यह भी नहीं करते कि एक दिन उसे अपने घर पर लकर खाना खिलाओ।
कहा भी हैं ब्रम्ह हत्या, शराब पीना, चोरी, वृत भंग दुष्ट व्यवहार का प्रायश्चित हो सकता हैं पर कृतघ्नता का कोई प्रायश्चित नहीं है। मेरे देवर को लेकर ही आना नही तो मैं मर जाउंगी।
भाई बंदर सागर के अंदर जो मेरा घर हैं वह तो बडा सुंदर हैं तुम जाने की चिंता न करो मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठाकर ले जाउंगा। बस फिर क्या था बंदर मगरमच्छ की पीठ पर बैठ गया, मगर उसे लेकर तेजी से गहरे पानी में जाकर चलने लगा उसे इस तेजी से गहरे पानी में कुदता देखकर बंदर घबरा गया, उसे ऐसा लग रहा था जैसे उसके सिर पर कोई खतरा मंडरा रहा है।
उधर मगरमच्छ ने देखा कि अब बंदर उसके वश में है। यह गहरे पानी से निकलकर कहीं भी नहीं जा सकता, अब क्यों न इससे सारी बात कह डालूं। तभी उसने कहा- भाई बंदर सत्य बात तो यह हैं कि मैं तुझे धोखे में फसाकर मारने के लिए लाया हूं। अब तुम अपने भगवान को याद कर लो तुम्हारा अंतिम समय आ गया है।
यह सुनकर बन्दर दुखी हो कर बोला – भैया मैंने तुम्हारा और भाभी का क्या बूरा किया जो तुम मुझे मारने के लिए अपने घर ले जा रहे हो ? बंदर भैया मेरी पत्नी तुम्हारे ह्रदय का रस पीना चाहती हैं जिसके लिए मैंने ऐसा किया है।
बन्दर समझ गया कि अब तो वह इसके जाल में फंस गया है। अब मौंत उससे ज्यादा दूर नहीं। अगर उसने जल्दी ही कोई उपाय नहीं किया तो। मौत पक्की।
फिर अचानक ही बंदर की तेज बुद्धि ने काम किया उसने चुटकी बजाते हुए कहा – वाह भाई मगरमच्छ तुमने क्या बात कह दी यह बात तो तुम्हे मुझे वहीं पर बतानी चाहिए थी। अब तो सारा मामला बिगड गया अब तो सबकुछ बेकार हो गया।
क्यों भाई बेकार क्यों हो गया ? इसलिए कि जो मेरा मीठा दिल तुम्हारी पत्नी को चाहिए उसे तो मैं संभाल कर उस जामुन की पेड की जड के नीचे रखा करता हूं। यदि यह बात हैं तो तुम्हें जामुन के पेड तक वापस ले जाता हूं। तुम वहां से मुझे दिल निकालकर दे देना ताकि मेरी पत्नी खुश हो जाये। नहीं तो वह मर जायेगी।
हां, हां क्यों नहीं भाई आखिर मैं तुम्हारा मित्र हूं। तुम्हारे काम नहीं आउंगा तो किसके काम आउंगा। चलो जामुन के पेड तक बस। मगरमच्छ मोटी बुद्धि का था वह बंदर की चाल को समझा नहीं बस चल पडा वापस।
जामुन के पेड पर पहूंच कर बंदर उपर पेड पर चढ गया। नीचे खडे मगरमच्छ ने उससे कहा कि लाओं भाई अब दिल निकालकर दे दो। बंदर ने उपर से बोला – ओ पापी, धोखेबाज, दुष्ट, मूर्ख भला तु सोच कि कभी किसी के दो दिल भी होते हैं। अब तेरी भलाई इसी में हैं कि तु यहां से चला जा और फिर कभी भूलकर भी इधर न आना।
जो एक बार दुष्टता के बाद फिर से मित्रता करना चाहता हैं वह गर्भधारण करने वाली खच्चरी के समान मृत्यु को प्राप्त होता है। बंदर की बात सुनकर मगरमच्छ अपनी भूल पर पछताने लगा। वह सोचने लगा अब क्या होगा, मेरी मूर्खता के कारण मित्र भी हाथ से गया और पत्नी भी खुश न हो सकी।
यदि मैं रास्ते में बंदर को अपने मन की बात न बताता तो अवश्य ही अपनी पत्नी को खुश कर देता। लेकिन फिर मगरमच्छ को एक चाल सुझी उसने बंदर से कहा- अरे भाई तुम तो मेरे मजाक को सच मान गये। मैंने तो ऐसे ही कहा था आओ मेरे यहां चलो। इतने में बन्दर गुर्राते हुए बोला – ओ दूष्ट अब तु यहां से चला जा, किसी ने सच ही कहा हैं “एक बार मित्रता में कोई दगा करे तो उससे दूर ही रहना अच्छा है”।
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