शेखजी और शेरा डाकू – Sheikh Chilli Story

Sending
User Review
0 (0 votes)

Story of Shekh Chilli – शेख और शेरा डाकू

sheikh chilli ki kahaniyan

काम धंधे की तलाश में एक दिन शेख गाँव से शहर आए। वे रात के समय शहर पहुंचे। शहर में उनका कोई जान-पहचान वाला नहीं था और ऊपर से वे रात के समय शहर में पहुंचे थे इसलिए न तो रहने का प्रबंध हुआ और न ही खाने-पिने का । 

वे अँधेरी रात को अपना थैला उठाए सडको पर भटक रहे थे। तभी कुछ सिपाहियों ने उन्हें चोर समझकर पकड़ लिया और उनके थैले को चोरी का माल बताकर जब्त कर लिया। फिर उन्हें जेल में डाल दिया।

एक रात वे किसी तरह अपनी कोठरी से बाहर आए, उस समय रात का एक बज रहा था, वे छुपते-छुपते जेल की दिवार के पास आए । अचानक उनके रोंगटे खड़े हो गए ।

वहां उन्हें एक परछाई-सी दिखाई दी। वे लौटकर पीछे जाना चाहते थे, लेकिन तभी उन्हें अचानक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई दी – “मेरे साथ चलो, आओ यहाँ से भाग चलें ।”

वह शेरा नामक एक खूंखार डाकू था जो पांच साल की सजा भुगत रहा था। शेख उसी क्षण उसके साथ हो लिए । शेरा व् शेख अब एक ऊँची दिवार के पास खड़े थे ।

शेरा ने अपनी कमर से बंधी एक मजबूत रस्सी निकाली और उसे खोलकर उसका एक सिर दिवार के पार फेंक दिया । डोरी का एक सिर शेर के हाथ में था और दूसरा बाहर की और शेरा के किसी साथी ने लपक लिया था ।

शेरा ने रस्सी का सिरा पकड़कर खिंचा तो रस्सी तन गई । इसका तात्पर्य था की दूसरी तरफ से रस्सी को मजबूती से पकड़ लिया गया हैं । “जब में रस्सी के सहारे दिवार पर चढ़ जाऊ, तब तुम भी इसी रस्सी के सहारे दिवार पर चढ़कर बाहर आ जाना ।”

शेरा ने शेख से कहा शेरा ने दिवार पर चढने से पहले रस्सी को खींचकर देखा। शेख उसे मजबूती से थामें थे। शेरा अब दिवार से उस पार उतरने लगा ।

अचानक शेख के दिमाग में जाने कहाँ से बुद्धि की एक लहर आ गई जब शेरा उत्तर जाएगा तो मुझे कौन उतारेगा ? रस्सी कौन पकड़ेगा ? यह विचार मन में आते ही उन्होंने रस्सी छोड़ दी । शेरा अधार में था, डोरी छोड़ते ही वह धड़ाम से जमीं पर आ गिरा ।

उसके धमाके से सारे सिपाही दौड़ते हुए आए और शेरा जख्मी हालत में पकड़ लिया गया। शेख चारदीवारी के पास ही खड़े थे इसलिए उनका बयान लिया गया। शेख बोले-“में एक ईमानदार आदमी हूँ तथा बेकसूर जेल में पहुंचा दिया गया हूँ, इसके बावजूद कानून के प्रति मेरी भावनाए हैं ।

करीब एक बजे में पेशाब करने के लिए बाहर आया तो शेरा पता नहीं कीस तरह दिवार पर चढ़ गया। जब मैंने इस खतरनाक कैदी को भागते हुए देखा तो चोरी का कैदी होने के बावजूद भी में इसका भागना सहन न कर सका और मैंने एक पत्थर उठाकर इस पर दे मार। पत्थर लगते ही यह इस और आ गिरा । उसके बाद जो हुआ, आपके सामने हैं ।” जेलर ने शेख का बयान सूना और बहुत प्रभावित हुआ। उसी समय उसने कहा ।

शेख जैसे महान पुरुष को इस तरह जेल में रखना उचित नहीं, इन्हें छोड़ दिया जाए । इन जैसे ईमानदार लोगों की पुलिस में बड़ी जरुरत हैं । अत: इन्हें में इस नगर का दरोगा नियुक्त करता हूँ ।” अब शेख चोर नहीं थे । बेवकूफ और मुर्ख भी नहीं थे ।

अब तो वे नगर के एकमात्र दरोगा थे । यह सब किस्मत के खेल हैं । परमात्मा चाहे तो कुछ भी हो सकता है । बिलकुल ऐसा ही चमत्कार शेख के साथ हुआ । अब उन्हें विश्वास हो गया की यदि अपनी मूर्खता छोड़कर वह जरा भी बुद्धि से कार्य करें तो सारे कष्ट दूर हो सकते हैं ।

Other Stories

Leave a Reply