जानिए हर शुभ कार्य में पहले गणेश जी की पूजा क्यों की जाती हैं ?

बहुत से लोगों को शुभ काम में गणेश की पहले पूजा क्यों की जाती हैं इस बारे में नहीं पता होता हैं, और फिर भी आज के लोग हर शुभ कार्य में गणेश पूजन करते हैं। ऐसे में गणेश पूजन का सार ही खत्म हो जाता हैं, उसका कोई महत्व नहीं रह जाता। गणेश पूजन के बहुत गहरे अर्थ होते हैं, जो की हर एक व्यक्ति को नया काम करने पर धारण करने चाहिए। आइये जानिये गणेश जी में वह ऐसे कौन से गुण होते हैं जो की हमे भी धारण करना चाहिए।

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हिन्दू धर्म में कोई ऐसा कार्य नहीं जो गणपति पूजन के बिना प्रारंभ किया जाता हो, मनुष्य श्री गणेश कहकर ही कोई कारोबार या शुभ काम या दुकान आरंभ करता है। गणेश जी को सिर हाथी का हैं इसका तात्पर्य हैं कि हाथी ही एक मात्र ऐसा जीव हैं जो बहुत गहराई से सोचता हैं और इतना ही नहीं जब वह चलता हैं तो अपनी सूण्ड से फुंक मार-मार कर कदम रखता है।

शुभ कार्य में पहले गणेश जी की पूजा क्यों करते हैं

इससे अभिप्राय हैं कि रास्ते में एक चींटी के समान भी अडचन न आने पाये अर्थात ऐसी छोटी से छोटी दिक्कत जो देखेन में चींटी के समान लगे परन्तु बाद में आपकी शक्ल को, दिमाग को खराब कर दे जिसके नुकसान से आप सर पटक-पटक कर अपना नुकसान कर बैठें, हाथी का विशाल मस्तक इस बात का प्रमाण हैं कि जब हाथी किसी विपत्ति में होता हैं तो वह धैर्य रखकर उससे निकलने और उबरने की कोशिश करता हैं। और अपनी बुद्धि द्वारा उसे हल कर लेता है। ऐसे में आप भी जब कोई काम करें तो हाथी की भांति पहले पूर्ण विचार करके एक-एक कदम फुंक-फुक कर रखें अर्थात पूरे ध्यान से रखें और ऐसा रखें कि पीछे न मुडना पडे। तभी तो श्री गणेश कहते हैं।

गणेश जी के साकार विग्रह में मनुष्य के धड पर हाथी का मूख संयुक्त किया गया हैं, इसमें भी रहस्य हैं। हाथी में बुद्धि, धैर्य और गंभीर्य का प्राधान्य है। गणेश जी का हाथी का सिर उनके इन्हीं गुणों को प्रदर्षित करता है। हाथी के नैत्रों की भी अपनी महिमा है। हाथी के नैत्रों को निर्माण संसार के सभी प्राणीयों के नैत्रों से विपरित है। हाथी के नैत्र छोटी वस्तु को भी बडी देखते हैं, अपने कार्य में विघ्न न चाहने वाले व्यक्ति को भी अपना दृष्टिकोण हाथी की भांति दूसरों को अपने से बडा देखने वाला बनना चाहिए।

गणेश जी के शरीर के हर एक अंग एक अर्थ व गुण लिए हुए हैं

जब मनुष्य दूसरों को अपने सामने तुच्छ समझकर उनका अपमान करता हैं तो दूसरे लोग अपने सम्मान की रक्षा के लिए उसे ह्रदय से सहयोग नहीं देते। इसलिए दूसरों को अपने से बडा देखने की शिक्षा एकमात्र हाथी के नैत्रों से ही मिलती है। हाथी की तरह बडे कानों का अर्थ हैं कि हमें सब कुछ धैर्य एंव गंभीरता से सुनना चाहिए। गणेश जी का लंबोदर अर्थात लंबा, मोटा पेट हमें सबकी भली-बूरी बातों को सुनकर अपने पेट में रखने की शिक्षा देता है।

गणेश जी को एक दंत भी कहा जाता है। उनका एक दंत एकता का भी सन्देश देता है। एक कहावत हैं कि अमुख लोगों में बहुत एकता है। एक दांत से रोटी खातें है। गणेश जी को वरदहस्त भक्तों की कामनापूर्ति तथा अभयहस्त संपूर्ण भयों से रक्षा का सूचक है।

जैसा कि सब जानते हैं कि गणपति जी का वाहन मूषक अर्थात चूहा है। गणपति बुद्धि के देवता हैं आक्र चूहा तर्क का प्रतिक होता है, इसलिए बुद्धि सदैव तर्क पर सवार रहती है। मूषक का एक अन्य अर्थ हैं चोरी करने वाला, मनुष्य के भीतर जो चोरी आदि पाप की वृत्तियां हैं उनका प्रतिक हैं मूषक।

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मूषक राज यानी बुरी आदतें, नकारात्मक चीजें

गणेश जी उस मूषक पर चढते हैं अर्थात उस पर चरण प्रहार करके उसे दबाये रहते हैं। गणेश जी के चिंतन और स्मरण से भीतर के दुर्गूण दब जाते हैं। गणेश जी को गजमूख भी कहा जाता है, जिसका अर्थ आठों दिषाओं की ओर मूख करने वाला होता है।

गणेश जी आठों पहर की ओर आठों दिषाओं की खबर रखते है। इसलिए उन्हें गजमूख कहा जाता है। इसलिए इनकी पूजा किये बिना किसी भी मागलिक कार्य का प्रारंभ नहीं किया जाता है। क्योंकि उनमे यह इतने सारे गुण होते हैं।

आज के युग में गणेश पूजन तो की जाती है, लेकिन उन्है यह पता नही होता वह गणेश की पूजन किस लिए कर रहे हैं। कोई भी नया काम करने पर गणेश पूजन का अर्थ होता है – बताये गए गणेश के गुण, धैर्य से काम करना, सब की सुनना, बुद्धि से काम लेना, बुरी वृत्तियों को दूर रखना आदि। गणेश का पूजन का यह अर्थ होता हैं की आप यह संकल्प लें की आप भी नए शुभ कार्य में इन सब बातों का ध्यान रखेंगे।

लेकिन ज्यादातर लोगों को इस बारे में कुछ भी पता नहीं। इसलिए हमने सोचा की क्यों न गणेश जी के पहले पूजा क्यों की जाती हैं इस बारे में कुछ लिखा जाए। दोस्तों इसे Facebook और Whatsapp पर इतना SHARE करे की यह हर एक व्यक्ति तक पहुँच जाए और वह सभी लोग जिनको गणेश की पूजा क्यों करते हैं इस बारे में पता नहीं हो वह भी अच्छे से जान सके। SHARE कर के हमारी मदद करे।

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